________________ देशम शतक : उद्देशक-५ ] [621 का नाम अंगारावतंसक और सिंहासन का नाम अंगारक है, (जिस पर बैठ कर यह देवी-परिवार के साथ मैथुननिमित्तक भोग नहीं भोग सकता) इत्यादि शेष समग्रवर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए / 30. एवं वियालगस्स वि। एवं अट्ठासीतीए वि महागहाणं भाणियव्वं जाव भाव के उस्ल / नवरं वसगा सीहासणाणि य सरिसनामगाणि / सेसं तं चेव / [30] इसी प्रकार व्यालक नामक ग्रह के विषय में भी जानना चाहिए / इसी प्रकार 88 महाग्रहों के विषय में यावत्-भावकेतु ग्रह तक जानना चाहिए / परन्तु विशेष यह है कि अवतंसकों और सिंहासनों का नाम इन्द्र के नाम के अनुरूप है / शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। विवेचनचन्द्र, सूर्य और ग्रहों की देवियों को संख्या- प्रस्तुत 4 सूत्रों (27 से 30 तक) में चन्द्र, सूर्य, अंगारक, व्यालक आदि 88 महाग्रहों की अग्रमहिषियों तथा देवी-परिवार आदि का अतिदेशपूर्वक निरूपण किया गया है।' शकेन्द्र और उसके लोकपालों का देवी-परिवार 31. सक्कस्स णं भंते ! देविदस्स देवरग्णो० पुच्छा। अज्जो! अट्ठ अग्गहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा----पउमा सिवा सुयो अंजू अमला अच्छा नवमिया रोहिणी। तत्थ णं एगमेगाए देवीए सोलस सोलस देविसहस्सा परियारो पन्नत्तो / पभू गं ताओ एगमेगा देवी अन्नाई सोलस सोलस देविसहस्सा परियारं विउवित्तए / एवामेव सपुत्वावरेणं अट्ठावीसुत्तरं देविसयसहस्सं, से तं तुडिए / [31 प्र.| भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? 31 उ.] पार्यो ! (शकेन्द्र की) आठ अग्रमहिषियाँ हैं। यथा—(१) पदमा, (2) शिवा, (3) श्रेया, (4) अज , (5) अमला, (6) अप्सरा, (7) नवमिका और (8) रोहिणी। इनमें से प्रत्येक देवी (अग्नमहिषी) का सोलह-सोलह हजार देवियों का परिवार कहा गया है। इनमें से प्रत्येक देवी सोलह-सोलह हजार देवियों के परिवार को विकुर्वणा कर सकती है / इस प्रकार पूर्वापर सब मिला कर एक लाख अट्ठाईस हजार देवियों का परिवार होता है / यह एक त्रुटिक (देवियों का वर्ग) कहलाता है / 32. पभू णं भंते ! सक्के देविदे देवराया सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धि सेसं जहा चमरस्स (सु. 6-7) / नवरं परियारो जहा मोउद्देसए (स. 3 उ. 1 सु. 15) / [32 प्र.] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, सौधर्मकल्प (देवलोक) में, सौधर्मावतंसक विमान में, सुधर्मासभा में, शक्र नामक सिंहासन पर बैठ कर अपने (उक्त) त्रुटिक के साथ भोग भोगने में समर्थ है ? [32 उ.] पार्यो ! इसका समग्र वर्णन चमरेन्द्र के समान (सू. 6-7 के अनुसार) जानना चाहिए। विशेष इतना ही है कि इसके परिवार का कथन भगवतीसूत्र के तीसरे शतक के 'मोका' नामक प्रथम उद्देशक (सू. 15) के अनुसार जान लेना चाहिए / 33. सक्कस्स णं देविंदस्स देबरण्णो सोमस्स महारण्णो कति अगमहिसीओ० पुच्छा। प्रज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीनो पन्नत्ताओ, तं जहा-रोहिणी मदणा चित्ता सोमा। तत्थ णं 1. वियाहपण्ण त्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणायुक्त), भा. 2, पृ. 502-503 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org