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________________ दशम शतक : उद्देशक-५]] [617 18] जो दक्षिणदिशावर्ती इन्द्र हैं, उनका कथन धरणेन्द्र के समान तथा उनके लोकपालों का कथन धरणेन्द्र के लोकपालों के समान जानना चाहिए। उत्तरदिशावर्ती इन्द्रों का कथन भूतानन्द के समान तथा उनके लोकपालों का कथन भी भूतानन्द के लोकपालों के समान जानना चाहिए / विशेष इतना है कि सब इन्द्रों की राजधानियों और उनके सिंहासनों का नाम इन्द्र के नाम के समान जानना चाहिए / उनके परिवार का वर्णन भगवती सूत्र के तीसरे शतक के प्रथम मोक उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए। सभी लोकपालों की राजधानियों और उनके सिंहासनों का नाम लोकपालों के नाम के सदृश जानना चाहिए तथा उनके परिवार का वर्णन चमरेन्द्र के लोकपालों के परिवार के वर्णन के समान जानना चाहिए। विवेचन---भूतानन्द, दक्षिण-उत्तरवर्ती इन्द्र एवं उनके लोकपालों के देवी-परिवार का वर्णन प्रस्तुत तीन सूत्रों (16-17-18) में अतिदेशपूर्वक किया गया है / प्रायः सारा वर्णन समान है, केवल राजधानियों, सिंहासनों तथा व्यक्तियों के नामों में अन्तर है। राजधानियों और सिंहासनों के नाम प्रत्येक इन्द्र के अपने-अपने नाम के अनुसार हैं। सुधर्मासभा में प्रत्येक इन्द्र की अपने देवीपरिवार के साथ मैथुननिमित्तक असमर्थता भो साथ-साथ ध्वनित कर दी है।' व्यन्तरजातीय देवेन्द्रों के देवी-परिवार प्रादि का निरूपण 19. [1] कालस्स णं भंते ! पिसायिदस्स पिसायरण्णो कति अग्गमहिसोपो पन्नताओ? अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा- कमला कपलप्पभा उप्पला सुदंसणा / तत्थ णं एगमेगाएदेवीए एगमेगं देविसहस्सं, सेसं जहा चमरलोगपालाणं / परियारो तहेव, नवरं कालाए रायहाणीए कालंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव / [16-1 प्र.] भगवन् ! पिशाचेन्द्र पिशाचराज काल की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? [16-1 उ.] पार्यो ! (कालेन्द्र की) चार अग्रमहिषियाँ हैं / यथा-कमला, कमलप्रभा, उत्पला और सुदर्शना / इनमें से प्रत्येक देवी (अग्रमहिषी) के एक-एक- हजार देवियों का परिवार है। शेष समग्र वर्णन चमरेन्द्र के लोकपालों के समान जानना चाहिए एवं परिवार का कथन भी उसी के परिवार के सदृश करना चाहिए / विशेष इतना है कि इसके 'काला' नाम की राजधानी और काल नामक सिंहासन है / शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। [2] एवं महाकालस्स वि। [16-2] इसी प्रकार पिशाचेन्द्र महाकाल का एतद्विषयक बर्णन भी इसी प्रकार समझना चाहिए। 20. [1] सुरुवस्स गं भंते ! भूइंदस्स भूयरन्नो पुच्छा / प्रज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा- रूवबती बहुरूवा सुरुवा सुभगा / तत्थ णं एगमेगाए० सेसं जहा कालस्स / [20-1 प्र.] भगवन् ! भूतेन्द्र भूतराज सुरूप की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? 1. वियाहपमणत्तिसुत्तं, (मू. पा. टिप्पणयुक्त), भा. 2, पृ. 500-501 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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