SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [15 उ.] आर्यो ! (धरणेन्द्र के लोकपाल कालवाल की) चार अग्रहिषियाँ हैं / यथा--- अशोका, विमला, सुप्रभा और सुदर्शना / इनमें से एक-एक देवी का परिवार आदि वर्णन चमरेन्द्र के लोकपाल के समान समझना चाहिए। इसी प्रकार (धरणेन्द्र के) शेष तीन लोकपालों के विषय में भी कहना चाहिए। विवेचन-धरणेन्द्र तथा उसके चार लोकपालों का देवीपरिवार तथा सुधर्मासभा में भोगअसमर्थता को प्ररूपणा-प्रस्तुत तीन सूत्रों (13-14-15) में धरणेन्द्र तथा उसके लोकपालों की अग्रमहिषियों सहित देवीवर्ग की संख्या तथा सुधर्मा सभा में उनकी भोग-असमर्थता का प्रतिपादन किया गया है।' भूतानन्दादि भवन वाप्ती इन्द्रों तथा उनके लोकपालों का देवीपरिवार 16. भूमाणंदस्स गं भंते ! पुच्छा / प्रज्जो ! छ अग्गमहिसीओ पन्नत्तानो, तं जहा---रूया रूयंसा मुख्या रुयगावती रूयकता रूयप्पभा / तत्थ गं एगमेगाए देवीए० अबसेसं जहा धरणस्स / [16 प्र.] भगवन् ! भूतानन्द (भवनपतीन्द्र) को कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? [16 उ.] पार्यो ! भूतानन्द की छह अग्रमहिषियां हैं। यथा-रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपकावती, रूपकान्ता और रूपप्रभा। इनमें से प्रत्येक देवी -- अग्रमहिषी के परिवार आदि का तथा शेष समस्त वर्णन धरणेन्द्र के समान जानना चाहिए। 17. भूयाणंदस्स गं भंते ! नागवित्तस्स० पुच्छ।। अजो! चत्तारि अगम हिसीओ पन्नत्ताओ,, तं जहा-सुणंदा सुभद्दा सुजाया सुमणा / तत्थ णं एगमेगाए देवीए० अवसेसं जहा चमरलोगपालाणं / एवं सेसाणं तिण्ह वि लोगपालाणं / [17 प्र.] भगवन् ! भूतानन्द के लोकपाल नागवित्त के कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? इत्यादि पृच्छा / [17 उ.] पार्यो ! (नागवित्त की) चार अग्रमहिषियाँ हैं / वे इस प्रकार--सुनन्दा, सुभद्रा, सुजाता और सुमना / इसमें प्रत्येक देवी के परिवार प्रादि का शेष वर्णन चमरेन्द्र के लोकपाल के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार शेष तीन लोकपालों का वर्णन भी (चमरेन्द्र के शेष तीन लोकपालों के समान) जानना चाहिए / 18. जे दाहिणिल्ला इंदा तेसि जहा धरणस्स / लोगपालाणं पि तेसि जहा धरणलोगपालाणं / उत्तरिल्लाणं इंदाणं जहा भूयाणंदस्स / लोगपालाण वि तेसि जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणं / नवरं इंदाणं सम्वेसि रायहाणीओ, सीहासणाणि य सरिसणामगाणि, परियारो जहा मोउद्देसए (स. 3 उ. 1 सु. 14) / 2 लोगपालाणं सम्वेसि रायहाणीओ सोहासणाणि य सरिसनामगाणि, परियारो जहा चमरलोगपालाणं / नानादिया। 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मू. पा. टिप्पण) भा. 2, पृ. 500 2. देखिये---भगवतीसूत्र शतक 3, मोका नामक प्रथम उद्देशक, सू. 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy