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________________ दशम शतक : उद्देशक-५] [615 उनके देवी-परिवार का वर्णन है, साथ ही उनकी अपनी-अपनी राजधानी को सुधर्मा सभा में अपने देवो बर्ग के साथ उनकी मैथुननिमित्तक असमर्थता का भी अतिदेश किया गया है।' -:.:.:.: धरणेन्द्र और उसके लोकपालों का देवी-परिवार . 13. धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिदस्स नागकुमाररणो कति अग्गहिसीनो पन्नत्ताओ? प्रज्जो ! छ अगमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा--अला' मक्का सतेरा सोयामणी इंदा घणविज्जुषा / तत्थ णं एगमेगाए देवीए छ च्छ देविसहस्सा परियारो पन्नत्तो। पभू णं तानो एगमेंगा देवी अन्नाई छ च्छ देविसहस्साई परियारं विउवित्तए / एवामेव सयुव्वावरेणं छत्तीस देविसहस्सा, से तं तुडिए। .. [13 प्र.] भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण की कितनी अग्रमहिषियाँ कही गई हैं ? [13 उ.] पार्यो ! (धरणेन्द्र की) छह अग्रमहिषियाँ हैं / यथा--(१) अला (इला), (2) मक्का (शुक्रा), (3) सतारा, (4) सौदामिनी (5) इन्द्रा और (6) घनविद्यत / उनमें से प्रत्येक अनमहिषी के छह-छह हजार देवियों का परिवार कहा गया, है / इनमें से प्रत्येक देवी (अनमहिषी), अन्य छह-छह हज़ार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिला कर छत्तीस हजार देवियों का यह त्रुटिक (वर्ग) कहा गया है / ..... ....... .., 14. पभू णं भंते ! धरणे ? सेसं तं चेव, नवरं धरणाए- रायहाणीए धरणंसि सोहाससि सम्रो परियारो,3 सेसंतं चेव / ... . . ... . .. ____14 प्र] भगवन् ! क्या धरणेन्द्र- (सुधर्मासभा में देवीपरिवार के साथ) यावत् भोग भोगने में समर्थ है ? इत्यादि प्रश्न / .... [14 उ.] पूर्ववत् समग्र कथन, जालना चाहिए। विशेष इतना ही है कि (धरणेन्द्र की) राजधानी धरणा में धरण नामक सिंहासन पर बैठ कर) स्वपरिवार ....." शेष सब वर्णन पूर्ववत समझना चाहिए। ... 15. धरणस्त णं भंते ! नागकुमारिदस्स कालवालस्स लोगपालस्त महारण्णो कति अग्गमहिसोओ पन्नत्ताओ ? प्रज्जो ! चत्तारि अगमहिसोओ पन्नताओ; तं जहा–असोगा विमला सुम्पभा सुदंसणा / तस्थ णं एगमेगाए० अवसेसं जहा चमरलोगपालाणं / एवं सेसाणं तिण्ह वि लोगपालाणं / . .:: [15 प्र. भगवत् ! नागकुमारेन्द्र धरण के लोकपाल कालबाल नामक महाराजा की कितनी अग्रहिषियों हैं ..:-:.:. :::: .. :: .. . ........................ ? : 1. विद्यापणतिमत्त (मलपांत टिप्पणयक्त) भा. २.प४९९ 2. पाठान्तर-दूसरी प्रति में 'अला' के स्थान में 'इला', तथा 'मक्का' के स्थान में 'सुक्का' पाठ मिलता है। 3. धरणेन्द्र का स्वपरिवार---इस प्रकार है-"हिं सामाणियसाहस्सीहि, तायत्तीसाए तायत्तीसाए, चहि लोग• पालेहि, हि अगमहिसोहि सहि अणिएहि, सहि अणिया हिवईहिं चउवीसाए आयरक्खसाहस्सीहि अन्नेहि य बहूहिं नागकुमारेहि देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिवडेत्ति / " ---जीवाभिगमसूत्र, भगवती. अ. वत्ति, पत्र 506 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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