________________ 614) व्याख्याप्रप्तिसूत्रं विवेचन- चमरेन्द्र के चार लोकपालों का देवीपरिवार तथा सुधर्मासभा में भोगअसमर्थता-प्रस्तुत 5 सूत्रों (6 से 10 तक) में चमरेन्द्र के चारों लोकपालों (सोम, यम, वरुण, वैश्रमण) की अनमहिषियों तथा तत्सम्बन्धी देवीवर्ग की संख्या का, निरूपण किया गया है। साथ ही अपनी-अपनी राजधानी को सुधर्मा सभा में बैठ कर अपने देवीवर्ग के साथ सबकी, मैथुननिमित्तक भोग की असमर्थता बताई गई है। सबकी राजधानी और सिंहासन का नाम अपने-अपने नाम के अनुरूप है। बलीन्द्र एवं उसके लोकपालों का देवीपरिवार . .11. बलिस्सणं भंते ! वइरोणिदस्स० पुच्छा / प्रज्जो! पंच अग्गमाहिसीनो पनत्तानो, तं जहा-सुभा निसुभा रंभा निरंभा मयणा तत्थ पं.एगमेगाए देवीए.अट्ट० सेसंजहा चमरस्स; नवरं बलिचंचाए सयहाणोए परियारो जहा मोउद्देसए (स.उन 1 सु. 11-12),2 सेसं तं चेव, जाव मेहणवत्तियं .. . .... .. ..... ... ... ... . ... . .. ........ [11 प्र.] भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनरांज बली की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? 11 उ. पार्यो ! (बलीन्द्र की) पाँच अग्रमहिषियाँ हैं। वे इस प्रकार हैं-शुम्भा, निशुम्भा, रम्भा, निरम्भा और मदना। इनमें से प्रत्येक, देवी (अग्रमहिषी) के आठ-पाठ हजार देवियों का परिवार है; इत्यादि शेष समग्र वर्णन चमरेन्द्र के देवीवर्ग के समान जानना चाहिए / विशेष इतना है कि बलीन्द्र की राजधानी बलिचंचा है। इनके परिवार का वर्णन तृतीय शतक के प्रथम मोक उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए / शेष संब वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए; ' यावत्- वह (सुधर्मा सभा में) मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है। ' :: ... . 12. बलिस्स णं भंते ! वइरोणिदस्स वइरोयणरणो सोमस्स महारणो कति अग्गम हिसीओ पन्नत्तानो ? अज्जो! चत्तारि प्रगहिसीओ पन्नत्तानो, तं जहा–मीणगा सुभद्दा विजया असणी। तत्थ से एगमेगाए देवीए० सेसं जहा चमरसोमस्स, एवं जाव वेसमणस्स। [12 प्र.] भगवन् ! वैरोचनेन्द्र: वैरोचतराज बलि के लोकपाल सोम महाराजा की कितनी अनमहिषियाँ हैं ? [12 उ.] पार्यो ! (सोम महाराजा की), चार अग्नहिषियाँ हैं ? वे इस प्रकार-(१) मेनका, (2.) सुभद्रा, (3) विजया और (4). प्रशनी। इनकी एक-एक देवी का परिवार आदि समग्र चमरेन्द्र के लोकपाल सोम के समान जानना चाहिए / इसी प्रकार यावत् वैरोचनेन्द्र बलि के लोकपाल वैश्मण तक सारा वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। विवेचन-वैरोचनेन्द्र एवं उनके चार लोकपालों की अग्रहिषियों आदि का वर्णन-प्रस्तुत दो (11-12) सूत्रों में वैरोचनेन्द्र बली एवं पूर्वोक्त नाम के चार लोकपालों को अग्रमहिषियों तथा 1. वियाहमणत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 498-499 2. यहाँ भगवतीसुत्र के शतक 3 उ, 1 के 'मोका' उद्देशक में उल्लिखित वर्णन समझ लेना चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org