________________ [611. दशम शतक : उद्देशक-५] [4 उ.] पार्यो ! (चमरेन्द्र की) पांच अग्रम हिषियाँ कही गई हैं। वे इस प्रकार--(१) काली, (2). राजी, (3) रजनी, (4) विद्युत् और (5) मेघा। इनमें से एक-एक अग्रमहिषी का आठ-नाठ हजार देवियों का परिवार कहा गया है / * एक-एक देवी (अग्रमहिषी), दूसरी पाठ-पाठ हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है / इस प्रकार पूर्वापर सब मिला कर (पांच अग्रमहिषियों का परिवार) चालीस हज़ार देवियाँ हैं / यह एक त्रुटिक (वर्ग) हुआ / विवेचन-चमरेन्द्र को अग्रमहिषियों का परिवार--प्रस्तुत चौथे सूत्र में चमरेन्द्र की 5 अग्रमहिषियों तथा उनके प्रत्येक के 8-8 हजार देवियों का परिवार तथा कुल 40 हजार देवियाँ बताई गई हैं। इन सबका एक बर्ग (त्रुटिक) कहलाता है / कठिन शब्दार्थ अगमहिसी अग्रमहिषी (पटरानी या प्रमुख देवी) अट्ठदेवीसहस्साईपाठ-पाठ हजार देवियाँ / ' .. अपनी सुधर्मा सभा में चमरेन्द्र को मथुननिमित्तक भोग को असमर्थता 5. [1] पभू गं-भंते ! चमरे असुरिदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए समाए सुहम्माए चमरंसि सोहासणंसि तुडिएणं सद्धि दिब्धाई भोगभोगाइं जमाणे ब्रिरित्तए? :: णो इणळे समझें। . . . . . [5-1. प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर अपुनी चमरचंचा राजधानी की सुधर्मासभा : में चमर नामक सिंहासन पर बैठ कर (पूर्वोक्त) त्रुटिक (स्वदेवियों के परिवार) के साथ भोग्य दिव्य भोगों को भोगने में समर्थ है ? . : [5-1: उ..] (हे प्रार्थो ! ) यह अर्थ समर्थ नहीं / [2] से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइनो पभू चमरे असुरिदे चमरचंचाए रायहाणीएं जावे विहरित्तए ? "अज्जो ! चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो चमरचचाए रायहाणीए सभाएं सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएसु गोलबट्टसमुग्गएसु : बहूओ जिणसकहाओ सन्निक्खित्ताओ चिठ्ठति, जाओणे चमरस्स असुरिदस्स असुरकुमाररणो अन्नेसि च बहणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ वंदणिज्जायो नमसणिज्जाओ पूणिज्जाओं सक्कारणिज्जॉो सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पन्जुवासणिज्जानो भवंति, तेसि पणिहाए नो पभू; से तेणठेणं अज्जो ! एवं वुच्चइ - नो पभू चमरे असुरिंदे जाव राया चमरचंचाए जाव विहरित्तए।" [5-2. प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर चमरचंचा राजधानी की सुधर्मासभा में यावत् भोग्य दिव्य भोगों को भोगने में समर्थ नहीं है. ? : |5-2. उ.] आर्यो ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की चमरचंचा नामक राजधानी की सुधर्मासभा में माणवक चैत्यस्तम्भ में, वज्रमय (हीरों के) गोल डिब्बों में जिन भगवान् की बहुत-सी अस्थियाँ रखी हुई हैं, जो कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज के लिए तथा अन्य बहुत-से असुरकुमार देवों 1. भगवती. विवेचन, (पं. घेवरचन्दजी) भा. 4, पृ. 1821 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org