________________ पंचमो उद्देसओ : पंचम उद्देशक ... देवी : अग्रमहिषीवर्णन उपोद्घात 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे गुणसिलए चेइए जाव परिसा पडिगया। ... [1] उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था / वहां गुणशीलक नामक उद्यान था। (वहाँ श्रमण भगवान् महावीरस्वामो का समवसरण हुा / ) यावत् परिषद् (धर्मोपदेश सुन कर) लौट गई। .. 2, तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जहा अट्ठमें सए सत्तमुद्देसए (स. 8 उ. 7. सु. 3) जाव विहरति / ... [2] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीरस्वामी के बहुत-मे अन्तेवासी (शिष्य) स्थविर भगवान् जातिसम्पन्न " इत्यादि विशेषणों से युक्त थे, आटवें शतक के सप्तम उद्देशक के अनुसार अनेक विशिष्ट गुणसम्पन्न, यावत् विचरण करते थे। ..3. तए णं ते थेरा भगवंतो . जायसट्टा जायसंसया जहा गोयमसामी जाव पज्जुबासमाणा एवं वदासी- .. .-....... : . ... ... ... ... :: [3] एक बार उन स्थविरों (के मन) में (जिज्ञासायुक्त) श्रद्धा और शंका उत्पन्न हुई। अतः वे गौतमस्वामी की तरह, यावत् (भगवान् की) पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछने लगे विवेचन स्थविरों द्वारा पृच्छा-प्रस्तुत तीन सूत्रों में इस उद्देशक की उत्थानिका प्रस्तुत करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि एक बार जब भगवान् महावीर राजगृहस्थित गुणशीलक उद्यान में विराजमान थे, तब उनके शिष्यस्थविरों के मन में कुछ जिज्ञासाएँ उत्पन्न हुई। उनका समाधान पाने के लिए उन्होंने अपनी प्रश्नावलो क्रमश: भगवान् महावीर के समक्ष सविनय प्रस्तुत की / ' 4. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररणो कति अग्गम हिसीओ पन्नताओ? अज्जो ! पंच अग्गमहिसीनो पन्नताओ, तं जहा—काली रायी रयणी विज्जू मेहा / तत्थ णं एगमेगाए देवीए अटुट्ठ देवीसहस्सा परिवारो पन्नत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नाई अष्ट देवीसहस्साई परियारं विउवित्तए / एकामेव सपुब्वावरेणं चत्तालीसं देवीसहस्सा, से तं तुडिए / |4 प्र.] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी अग्रमहिषियाँ (पटरानियांमुख्यदेवियाँ) कही गई हैं ? 1. बियाहाणतिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), भा. 2, पृ. 497 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org