________________ चउत्थो उद्देसओ : चतुर्थ उद्देशक सामहत्थी : श्यामहस्ती उपोद्घात - 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नगरे होत्था / वण्णओ। दूतिपलासए चेतिए / सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। [1] उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। उसका यहाँ वर्णन समझ लेना चाहिए। वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था। (एक बार) वहाँ श्रमण भगवान महावीर का समवसरण हुआ। यावत् परिषद् आई और वापस लौट गई। 2. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूती नाम अणगारे जाव उड्दजाण जाव विहरई। [0] उस काल और उस समय में, (वहाँ श्रमण भगवान महावीर की सेवा में) श्रमण भगवान् महावीरस्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति (गौतम) नामक अनगार थे। वे ऊर्वजानु यावत् विचरण करते थे। 3. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अणगारे पगतिभद्दए जहा रोहे जाव उड्ढंजाणू जाव विहरति / |3] उस काल और उस समयं में श्रमण भगवान महावीर के एक अन्तेवासी (शिष्य) थेश्यामहस्ती नामक अनगार / वे प्रकृतिभद्र, प्रकृतिविनीत, यावत् रोह अनगार के समान उर्ध्व जानु, यावत् विचरण करते थे। 4. तए णं से सामहत्थी अणगारे जायसड्ढे जाव उढाए उठेति, उ० 2 जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छति, ते० उ० 2 भगवं मोयमं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी [4] एक दिन उन श्यामहस्ती नामक अनगार को श्रद्धा, संशय, विस्मय आदि उत्पन्न हुए / यावत वे अपने स्थान से उठे और उठ कर जहाँ भगवान गौतमस्वामी विराजमान थे, वहाँ पाए / भगवान् गौतमस्वामी के पास आकर वन्दना-नमस्कार कर यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछने लगे विवेचनश्यामहस्ती अनगार : परिचय एवं प्रश्न का उत्थान–प्रस्तुत 4 सूत्रों में बताया गया है कि उस समय श्रमण भगवान् महावीर वाणिज्यग्राम नगर में द्युतिपलाश नामक उद्यान में विराजमान थे। उनके पट्टशिष्य इन्द्रभूति गौतमस्वामी भी उन्हीं की सेवा में थे। वहीं भगवान् महावीर की सेवा में उनके एक शिष्य श्यामहस्ती थे, जो प्रकृति से भद्र, नम्र एवं विनीत थे / एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org