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________________ 600] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [16 प्र.] भगवन् ! 1. आमंत्रणी, 2. प्राज्ञापनी, 3. याचनी, 4. पच्छनी, 5. प्रज्ञापनी, 6. प्रत्याख्यानी, 7. इच्छानुलोमा, 8. अनभिगृहीता, 6. अभिगृहीता, 10. संशयकरणी, 11. व्याकृता और 12. अव्याकृता, इन बारह प्रकार की भाषाओं में 'हम पाश्रय करेंगे, शयन करेंगे, खड़े रहेंगे, बैठेंगे, और लेटेंगे' इत्यादि भाषण करना क्या प्रज्ञापनी भाषा कहलाती है और ऐसी भाषा मृषा (असत्य) नहीं कहलाती है ? [16 उ.] हाँ, गौतम ! यह (पूर्वोक्त) प्राश्रय करेंगे, इत्यादि भाषा प्रज्ञापनी भाषा है, यह भाषा मृषा (असत्य) नहीं है / है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है !' ऐसा कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-'प्राश्रय करेंगे' इत्यादि भाषा की सत्यासत्यता का निर्णय प्रस्तुत सू. 16 में लौकिक व्यवहार की प्रवृत्ति का कारण होने से आमंत्रणी आदि 12 प्रकार की असत्यामृषा (व्यवहार) भाषाओं में से 'पाश्रय करेंगे' इत्यादि भाषा प्रज्ञापनी होने से मृषा नहीं है, ऐसा निर्णय दिया गया है। बारह प्रकार की भाषाओं का लक्षण-मूलतः चार प्रकार की भाषाएँ शास्त्र में बताई गई हैं / यथा-सत्या, मृषा (असत्या), सत्यामृषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा / प्रज्ञापनासूत्र के ग्यारहवें भाषायद में असत्यामषाभाषा के 12 भेद बताए हैं, जिनका नामोल्लेख मूलपाठ में है। उनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं (1) आमंत्रणी-किसी को आमंत्रण-सम्बोधन करना / जैसे-हे भगवन् ! (2) प्राज्ञापनी-दूसरे को किसी कार्य में प्रेरित करने वाली / यथा-बैठो, उठो आदि / (3) याचनी याचना करने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा / जैसे—मुझे सिद्धि प्रदान करें। (4) पच्छनी-अज्ञात या संदिग्ध पदार्थों को जानने के लिए पृच्छा व्यक्त करने वाली। जैसे 'इसका अर्थ क्या है ?' (5) प्रज्ञापनी-उपदेश या निवेदन करने के लिए प्रयुक्त की गई भाषा / जैसे--मृषा वाद अविश्वास का हेतु है / अथवा ऐसे बैठेंगे, लेटेंगे इत्यादि। (6) प्रत्याख्यानी-निषेधात्मक भाषा। जैसे–चोरी मत करो। अथवा मैं चोरी नहीं करूंगा। (7) इच्छानुलोमा--दूसरे की इच्छा का अनुसरण करना अथवा अपनी इच्छा प्रकट करना / (8) अनभिग्रहीता-प्रतिनियत (निश्चित) अर्थ का ज्ञान न होने पर उसके लिए बोलना। (9) अभिग्रहीता--प्रतिनियत अर्थ का बोध कराने वाली भाषा / (10) संशयकरणी-अनेकार्थवाचक शब्द का प्रयोग करना / 1. विपाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. 2, पृ. 493 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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