________________ 596] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रे 8. [1] महिडीए णं भंते ! देवे अप्पिड्डीयस्स देवस्स मज्झमझेणं वीतीवएज्जा ? हंता, बीतीवएज्जा। [8-1 प्र.] भगवन् ! क्या महद्धिक देव, अल्पऋद्धिक देव के बीचोंबीच हो कर जा सकता है ? [8-1 उ.] हाँ, गौतम! जा सकता है / [2] से भंते ! कि विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू? गोयमा ! विमोहित्ता बि पभू, अविमोहित्ता वि पभू / [8-2 प्र.] भगवन् ! वह महद्धिक देव, उस अल्पऋद्धिक देव को विमोहित करके जाता है, अथवा विमोहित किये बिना जाता है ? [8-2 उ.] गौतम! वह विमोहित करके भी जा सकता है और विमोहित किये बिना भी जा सकता है। [3] से भंते ! कि पुचि विमोहेत्ता पच्छा बीतीवइज्जा ? पुचि वीतीवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा? गोयमा ! पुटिव वा विमोहित्ता पच्छा बीतीवएज्जा, पुटिव वा वीतीवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा / [8-3 प्र.] भगवन् ! वह महद्धिक देव, उसे पहले विमोहित करके बाद में जाता है, अथवा पहले जा कर बाद में विमोहित करता है? [8-3 उ.] गौतम! वह महद्धिक देव, पहले उसे बिमोहित करके बाद में भी जा सकता है और पहले जा कर बाद में भी विमोहित कर सकता है / 9. [1] अप्पिड्ढोए गं भंते ! असुरकुमारे महिड्डीयस्स असुरकुमारस्स मज्झमझेणं बीतीवएज्जा? णो इणठे समझें। [1-1 प्र.] भगवन् ! अल्प-ऋद्धिक असुरकुमार देव, महद्धिक असुरकुमार देव के बीचोंबीच हो कर जा सकता है ? [9-1 उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं / [2] एवं असुरकुमारेण वि तिण्णि आलावगा भाणियब्वा जहा ओहिएणं देवेणं भणिता। [6-2] इसी प्रकार सामान्य देव के पालापकों की तरह असुरकुमार के भी तीन पालापक कहने चाहिए। [3] एवं जाव थणियकुमारेणं / [6-3] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक तीन-तीन आलापक कहना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org