________________ दशम शतक : उद्देशक-३] [595 कठिन शब्दों का भावार्थ-आइडीए--स्वकीय शक्ति से.अथवा जिसमें आत्मा की (अपनी) ही ऋद्धि है, वह आत्मऋद्धिक होकर / परिड्डोए–पर (दूसरी-वैक्रिय) शक्ति से / वीइक्कते-उल्लंघन करता है / देवावासंतराई–देवावास विशेषों को।' देवों का मध्य में से होकर गमनसामर्थ्य 6. अप्पिड्डीए णं भंते ! देवे महिड्डीयस्स देवस्स मज्झमझेणं वीतीवइज्जा ? जो इणढे समझें। [6 प्र.] भगवन्! क्या अल्पऋद्धिक (अल्पशक्तियुक्त) देव, महद्धिक (महाशक्ति वाले) देव के बीच में हो कर जा सकता है ? [6 उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है / (वह, महद्धिक देव के बीचोंबीच हो कर नहीं जा सकता।) 7. [1] समिड्डीए णं भंते ! देवे समिडीयस्स देवस्स मज्झमझेणं बीतीवएज्जा ? णो इणठे समझें / पमत्तं पुण वीतीवएज्जा। [7-1 प्र.] भगवन् ! समद्धिक (समान शक्ति वाला) देव समद्धिक देव के बीच में से हो कर जा सकता है ? . [7-1 उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है; परन्तु यदि वह (दूसरा समद्धिक देव) प्रमन्न (असावधान) हो तो (बीचोंबीच हो कर) जा सकता है। [2] से णं भंते ! कि विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू ? गोयमा ! विमोहेत्ता पभू, नो अविमोहेत्ता पभू / [7-2 प्र.] भगवन्! क्या वह देव, उस (सामने वाले सद्धिक देव) को विमोहित करके जा सकता है या विमोहित किये विना जा सकता है ? - [7-2 उ.] गौतम ! वह देव, सामने वाले समद्धिक देव को विमोहित करके जा सकता है, विमोहित किये विना नहीं जा सकता। [3] से भंते ! किं पुटिव विमोहेता पच्छा वीतीवएज्जा ? पुटिव वीतीवएत्ता पच्छा विमोहेज्जा? ___ गोयमा ! पुन्धि विमोहेत्ता पच्छा बीतीवएज्जा, गोवि वीतीवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा। [7.3 प्र.] भगवन् ! क्या वह देव, उस देव को पहले विमोहित करके बाद में जाता है, या पहले जा कर बाद में विमोहित करता है ? [7-3 उ.] गौतम ! वह देव, पहले उसे विमोहित करता है और बाद में जाता है, परन्तु पहले जा कर बाद में विमोहित नहीं करता / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 499 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org