________________ 59.] [ म्यान्याप्राप्तिसूत्र [5 उ.] गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही गई है / यथा-शीता, उष्णा और शीतोष्णा / इस प्रकार यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का सम्पूर्ण पैतीसवाँ वेदनापद कहना चाहिए; यावत्-[प्र.] 'भगवन्! क्या नैरयिक जीव दु:बरूप वेदना वेदते हैं, या सुखरूप वेदना वेदते हैं, अथवा अदु:ख-असुखरूप वेदना वेदते हैं ? |उ.] हे गौतम ! नैरयिक जीव दुःखरूप वेदना भी वेदते हैं, सुखरूप वेदना भो वेदते हैं और अदुःख-असुखरूप वेदना भी वेदते हैं। विवेचन-वेदनापद के अनुसार वेदना-निरूपण-प्रस्तुत 5 वें सूत्र में प्रज्ञापनासूत्रगत वेदनापद का अतिदेश करके बेदना सम्बन्धी समग्र निरूपण का संकेत किया गया है। वेदना : स्वरूप और प्रकार-जो वेदी (अनुभव की) जाए उसे वेदना कहते हैं / प्रस्तुत में वेदना के तीन प्रकार बताए गए हैं-शीतवेदना, उष्णवेदना और शीतोष्णवेदना / नरक में शीत और उष्ण दोनों प्रकार की वेदना पाई जाती है। शेष असुरकुमारादि से वैमानिक तक 23 दण्डकों में तीनों प्रकार की वेदना पाई जाती हैं / दूसरे प्रकार से वेदना 4 प्रकार की है-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः और भावतः / पुद्गल द्रव्यों के सम्बन्ध से जो वेदना होती है वह द्रन्यवेदना, नरकादि क्षेत्र से सम्बन्धित वेदना क्षेत्रवेदना, पंचमारक एवं षष्ठारक सम्बन्धी वेदना कालवेदना, शोक-क्रोधादिसम्बन्धजनित वेदना भाववेदना है / समस्त संसारी जीवों के ये चारों प्रकार की वेदनाएँ होती हैं। प्रकारान्तर से त्रिविधवेदना-शारीरिक, मानसिक और शारीरिक-मानसिक वेदना / 16 दण्डकवर्ती समनस्क जीव तीनों प्रकार की वेदना बेदते हैं। जबकि पांच स्थावर एवं तीन विकलेन्द्रिय इन 8 दण्डकों के असंज्ञी जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं। वेदना के पुनः तीन भेद हैं-सातावेदना, असातावेदना और साता-असाता वेदना / चौवीस दण्डकों में इन तीनों प्रकार की वेदना पाई जाती हैं / वेदना के पुन: तीन भेद हैं--दुःखा, सुखा और अदुःखसुखा वेदना / तीनों प्रकार की वेदना चौवीस ही दण्डकों में पाई जाती हैं। साता-प्रसाता तथा सुखा-दुःखा वेदना में अन्तर यह है कि साता-असाता क्रमश: उदयप्राप्त वेदनीयकर्म-पुद्गलों की अनुभवरूप वेदनाएँ हैं, जबकि सुखा-दुःखा दूसरे के द्वारा उदीर्यमाण वेदनीय के अनुभवरूप वेदनाएँ हैं / _वेदना के दो भेद-अन्य प्रकार से भी हैं / यथा-आभ्युपगमिकी और प्रौपक्रमिकी। स्वयं कष्ट को स्वीकार करके वेदी जाने वाली आभ्युपगमिकी वेदना है, यथा-केशलोच आदि तथा औपक्रमिकी वेदना वह है, जो स्वयं उदीर्ण (उदय में आई हुई, ज्वरादि) वेदना होती है, अथवा जिसमें उदीरणा करके उदय में लाई वेदना का अनुभव किया जाता है / तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और मनुष्य में दोनों प्रकार की वेदनाएँ होती हैं, शेष बाईस दण्डकों में एकमात्र औपक्रमिकी वेदना होती है। वेदना के दो भेद : प्रकारान्तर से—निदा और अनिदा। विवेकसहित जो वेदी जाए वह निदावेदना है और विवेकपूर्वक न वेदी जाए वह अनिदावेदना है। नैरयिक, भवनपति, वाणव्यन्तर, तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय एवं मनुष्य ये 14 दण्डकों के जीव दोनों प्रकार की वेदनाएँ वेदते हैं। इनमें जो संज्ञीभूत 1. (क) वियाहपत्तिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 2, पृ. 489 (ख) प्रज्ञापनासूत्र (म. जे. विद्यालय) 35 वां वेदनापद, सू. 2054-84, पृ. 424- 27 / 2. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 497 (ख) प्रज्ञापना, 35 वां वेदनापद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org