________________ 584] [ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 13. वायव्वा जहा अग्गेयी (सु. 9) / [13] वायव्या विदिशा का कथन अाग्नेयी के समान है / 14. सोमा जहा इंदा। [14] सौम्या (उत्तर)-दिशा का कथन ऐन्द्रीदिशा के समान जान लेना चाहिए / 15. ईसाणी जहा अग्गेयो। [15] ऐशानी विदिशा का कथन आग्नेयी के समान जानना चाहिए / 16. विमलाए जीवा जहा अग्गेईए, अजीवा जहा इंदाए / [16] विमला (ऊर्ध्व)-दिशा में जीवों का कथन आग्नेयी के समान है तथा अजीवों का कथन ऐन्द्री दिशा के समान है। 17. एवं तमाए वि, नवरं अरूवी छन्विहा / अद्धासमयो न भण्णति / [17] इसी प्रकार तमा (अधोदिशा) का कथन भी जानना चाहिए। विशेष इतना ही है कि तमादिशा में प्ररूपी-अजीव के 6 भेद ही हैं, वहाँ अद्धासमय नहीं है। अतः अद्धासमय का कथन नहीं किया गया। शेष दिशा-विदिशाओं की जीव-अजीवप्ररूपणा—सु. 10 से 17 तक पाठ सूत्री मानरूापत तथ्य का निष्कर्ष यह है कि शेष तीनों दिशाओं का जीव-अजीव सम्बन्धी कथन पूर्वदिशा के समान जानना चाहिए और शेष तीनों विदिशाओं का जीव-अजीव सम्बन्धी कथन आग्नेयीदिशा के समान जानना चाहिए / ऊर्ध्वदिशा में जीवों का कथन आग्नेयी के समान तथा अजीव-सम्बन्धी कथन ऐन्द्री के समान जानना चाहिए। तमा (अधो)-दिशा का भी जीव-अजीव-सम्बन्धी कथन ऊर्ध्वदिशावत् है किन्तु वहाँ गतिमान् सूर्य का प्रकाश न होने से अद्धासमय का व्यवहार सम्भव नहीं है। अतः वहाँ अद्धासमय (काल) नहीं है / यद्यपि ऊर्ध्वदिशा में भी गतिमान् सूर्य का प्रकाश न होने से प्रद्धासमय का व्यवहार संभव नहीं है, तथापि मेरुपर्वत के स्फटिक काण्ड में गतिमान् सूर्य के प्रकाश का संक्रमण होता है / इसलिए वहाँ समय का व्यवहार सम्भव है।' शरीर के भेद प्रभेद तथा सम्बन्धित निरूपण 18. कति णं भंते ! सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरोरा पण्णत्ता, तं जहा–ओरालिए जाव कम्मए / [18 प्र.] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [18 उ.] गौतम ! शरीर पांच प्रकार के कहे गए हैं / यया-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 494 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org