________________ दशम शतक : उद्देशक-१] [ 581 विवेचन-दिशाओं के ये दस नामान्तर क्यों ? प्रस्तुत 7 वें सूत्र में दिशाओं के दूसरे नामों का उल्लेख किया गया है / पूर्वदिशा (ऐन्द्री) इसलिए कहलाती है क्योंकि उसका स्वामी (देवता) इन्द्र है। इसी प्रकार अग्नि, यम, नैऋति, वरुण, वायु, सोम और ईशान देवता स्वामी होने से इन दिशाओं को क्रमशः आग्नेयी, याम्या, नैती, वारुणी, वायव्या, सौम्या और ऐशानी कहते हैं / ऊर्वदिशा प्रकाश-युक्त होने से उसे 'विमला' कहते हैं और अधोदिशा अन्धकारयुक्त होने से उसे 'तमा' कहते हैं।' दश दिशाओं की जीव-अजीव सम्बन्धी वक्तव्यता 8. इंदा णं भंते ! दिसा कि जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा? गोयमा ! जीवा वि, तं चेव जाव अजीवपएसा वि / जे जीवा ते नियम एगिदिया बेइंदिया जाव पंचिदिया, अणिदिया / जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेसा जाव अणिदियदेसा / जे जीवपएसा ते नियम एगिदियपएसा जाव अणिदियपएसा। जे अजीवा, ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- रूविअजीवा य, अरूविअजीवा य / जे रूविअजोवा ते चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा-खंधा 1 खंधदेसा 2 खंधपएसा 3 परमाणुपोग्गला 4 / जे अरूविधजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा-नो धम्मस्थिकाये, धम्मस्थिकायस्स देसे 1 धम्मत्थिकायस्स पदेसा 2; नो अधम्मस्थिकाये, अधम्मस्थिकायस्स देसे 3 अधम्मस्थिकायस्स पदेसा 4; नो आगासस्थिकाये, आगासथिकायस्स देसे 5 आगासस्थिकायस्स पदेसा 6 अद्धासमये 7 / [8 प्र.] भगवन् ! ऐन्द्री (पूर्व) दिशा जीवरूप है, जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप है, अथवा अजीवरूप है, अजीव के देशरूप है या अजीव के प्रदेशरूप है ? . [8 उ.] गौतम ! वह (ऐन्द्रो दिशा) जीवरूप भी है, इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् वह अजीवप्रदेशरूप भी है। उसमें जो जीव हैं, वे नियमत: एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय (केवलज्ञानी) हैं / जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीव के देश हैं, यावत् अनिन्द्रिय जीव के देश हैं। जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमत: एकेन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं, यावत् अनिन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं / उसमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं। यथा-रूपी अजीव और अरूपी अजीव / रूपी अजीवों के चार भेद हैं / यथा (1) स्कन्ध, (2) स्कन्धदेश, (3) स्कन्धप्रदेश और (4) परमाणुपुद्गल / जो अरूपी अजीव हैं, वे सात प्रकार के हैं। यथा-(१) (स्कन्धरूपसमन) धर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु धर्मास्तिकाय का देश है, (2) धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, (3) (स्कन्धरूप) अधर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु अधर्मास्तिकाय का देश है, (4) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, (5) (स्कन्धरूप) अाकाशास्तिकाय नहीं, किन्तु अाकाशास्तिकाय का देश है; (6) आकाशास्तिकाय के प्रदेश हैं और (7) अद्धासमय अर्थात् काल है / 1. इन्द्रो देवता यस्याः सैन्द्री। अग्निर्देवता यस्याः साऽग्नेयी / ........"ईशानदेवता ऐशानी विमलतया विमला। तमा रात्रिस्तदाकारत्वात्तमाऽन्धकारेत्यर्थः। -भगवती. अ. वत्ति, पत्र 493 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org