________________ 580] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दिशाओं के दस भेद 6. कति णं भंते ! दिसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! दस दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पुरथिमा 1 पुरस्थिमदाहिणा 2 दाहिणा 3 दाहिणपच्चत्थिया 4 पच्चस्थिमा 5 पच्चत्थिमुत्तरा 6 उत्तरा 7 उत्तरपुरस्थिमा 8 उड्डा 9 अहा 10 / [6 प्र.] भगवन् ! दिशाएँ कितनी कही गई हैं ? [6 उ.] गौतम ! दिशाएँ दस कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं--(१) पूर्व, (2) पूर्व-दक्षिण (आग्नेयकोण), (3) दक्षिण, (4) दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण), (5) पश्चिम, (6) पश्चिमोत्तर (वायव्यकोण), (7) उत्तर, (8) उत्तरपूर्व (ईशानकोण), (6) अर्ध्वदिशा और (10) अधोदिशा / विवेचन--दश दिशाओं के नाम प्रस्तुत छठे सूत्र में दश दिशात्रों के नामों का उल्लेख किया गया है। पूर्वसूत्रों में 6 दिशाएं बताई गई थी। इसमें चार विदिशाओं के 4 कोणों (पूर्वदक्षिण, दक्षिणपश्चिम, पश्चिमोत्तर, एवं उत्तरपूर्व) को जोड़ कर 10 दिशाएँ बताई गई हैं।' दिशाओं का यन्त्र उत्तर ईशान वायव्य। पश्चिम S ऊर्ध्व एवं अधः नैऋत्य आग्नेय दक्षिण दश दिशानों के नामान्तर 7. एयासि णं भंते ! दसण्हं दिसाणं कति णामधेज्जा पण्णता ? गोयमा! दसनामधज्जा पणत्ता.तं जहा इंदग्गेयी 1-2 जम्मा य 3 नेरती 4 वारुणी 55 वायवा 6 / सोमा 7 ईसाणी या 8 विमला य 9 तमा य 10 बोधवा // 2 // [7 प्र.] भगवन् ! इन दस दिशानों के कितने नाम कहे गए हैं ? [7 उ. गौतम ! (इनके) दस नाम हैं / वे इस प्रकार हैं [गाथार्थ] - (1) ऐन्द्री (पूर्व), (2) प्राग्नेयी (अग्निकोण), (3) याम्या (दक्षिण), (4) नैऋती (नैऋत्यकोण), (5) वारुणी (पश्चिम), (6) वायव्या (वायव्य कोण), (7) सौम्या (उत्तर), (8) ऐशानी (ईशानकोण), (6) विमला (ऊर्वदिशा) और (10) तमा (अधोदिशा)। ये दस (दिशात्रों के) नाम समझने चाहिए / 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठटिप्पण) भा. 2, पृ. 485 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org