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________________ दसमं सयं : दशम शतक प्राथमिक * भगवतीसूत्र के दसवें शतक में कुल चौतीस उद्देशक हैं, जिनमें मनुष्य जीवन से तथा दिव्य जीवन से सम्बन्धित विषयों का प्रतिपादन किया गया है / * दिशाएँ, मानव के लिए ही नहीं; समस्त संजीपंचेन्द्रिय जीवों के लिए अत्यन्त मार्गदर्शक बनती हैं, विशेषत: जल, स्थल एवं नभ से यात्रा करने वाले मनुष्य को अगर दिशाओं का बोध न हो तो वह भटक जाएगा, पथभ्रान्त हो जाएगा / जिस श्रावक ने दिशापारमाणवत अंगीकार किया हो, उसके लिए तो दिशा का ज्ञान अतीव ही आवश्यक है। प्राचीनकाल में समुद्रयात्री कुतुबनुमा (दिशादर्शक-यंत्र) रखते थे, जिसकी सूई सदैव उत्तर की ओर रहती है। योगी जन रात्रि में ध्र व तारे को देखकर दिशा ज्ञात करते हैं। इसीलिए श्रीगौतमस्वामी ने भगवान से प्रथम उद्देशक में दिशाओं के स्वरूप के विषय में प्रश्न किया है कि वे कितनी हैं ? वे जीवरूप हैं या अजीवरूप ? उनके देवता कौन-कौन से हैं जिनके आधार पर उनके नाम पड़े हैं? दिशाओं को भगवान् ने जोवरूप भी बताया है, अजीवरूप भी। विदिशाएँ जीवरूप नहीं, किन्तु जीवदेश, जीवप्रदेश रूप हैं तथा रूपी अजीवरूप भी हैं, अरूपी अजीवरूप भी हैं, इत्यादि वर्णन पढ़ने से यह स्पष्ट प्रेरणा मिलती है कि प्रत्येक साधक को दिशाओं में स्थित जीव या अजीव को किसी प्रकार से प्राशातना या असंयम नहीं करना चाहिए / अन्तिम दो सूत्रों में शरीर के प्रकार एवं उससे सम्बन्धित तथ्यों का अतिदेश किया है। * द्वितीय उद्देशक में कषायभाव में स्थित संवत अनगार को विविध रूप देखते हुए साम्परायिकी और अकषायभाव में स्थित को ऐर्यापथिकी क्रिया लगने का सयुक्तिक प्रतिपादन है / साथ ही योनियों और वेदनाओं के भेद-प्रभेद एवं स्वरूप का तथा मासिक भिक्षुप्रतिमा की वास्तविक अाराधना का दिग्दर्शन कराया गया है / इसके पश्चात् अकृत्यसेवी भिक्षु की आराधनाअनाराधना का सयुक्तिक प्रतिपादन किया गया है। यह उद्देशक साधकों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण व प्रेरक है। ततीय उद्देशक में देवों और देवियों की एक दुसरे के मध्य में होकर गमन करने की सहज शक्ति और अपरा शक्ति | वैक्रियशक्ति] का निरूपण किया गया है। 18 वें सत्र में दौड़ते हुए घोड़े की खू-खू ध्वनि का हेतु बताया गया है और अन्तिम 16 व सूत्र में असत्यामृषाभाषा के 12 प्रकार बता कर उनमें से बैंठे रहेंगे, सोयगे, खड़े होंगे आदि भाषा को प्रज्ञापनी बताकर भगवान् ने उसके मृषा होने का निषेध किया है / * चतुर्थ उद्देशक के प्रारम्भ में गणधर गौतमस्वामी से श्यामहस्ती अनगार के त्रास्त्रिशक देवों के अस्तित्व हेतु तथा सदाकाल स्थायित्व के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर हैं / अन्त में गौतम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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