________________ नवम शतक : उद्देशक-३४] [575 वायुकाय को वृक्षमूलादि कंपाने-गिराने संबंधी क्रिया 23. वाउक्काइए णं भंते ! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। [23 प्र. भगवन् ! वायुकायिक जीव, वृक्ष के मूल को कंपाते हुए और गिराते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ? [23 उ.) गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार किया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं। 24. एवं कंदं / [24] इसी प्रकार कंद को कंपाने आदि के सम्बन्ध में जानना चाहिए। 25. एवं जाव बोयं पचालेमाणे वा० पुच्छा। गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्तिक / // चउत्तीसइमो उद्देसो समत्तो // 9. 34 // ॥नवमं सतं समत्तं // 9 // [25 प्र.} इसी प्रकार यावत् बीज को कंपाते या गिराते हुए आदि की क्रिया से सम्बन्धित प्रश्न / |25 उ.] गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले, कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं। विवेचन-वायुकायिकों द्वारा वृक्षादि कम्पन-पातन-सम्बन्धी क्रिया-वायुकायिक जीव वृक्ष के मूल को तभी कम्पित कर सकते हैं या गिरा सकते हैं, जब कि वृक्ष नदी के किनारे हो और उसका मूल पृथ्वी से ढंका हुना न हो। शंका-समाधान-- वृक्ष के मूल को गिराने मात्र से पारितापनिकी सहित तीन क्रियाएँ वायुकायिकजीवों को कैसे लग सकती हैं ? इसका समाधान वृत्तिकार यों करते हैं- 'अचेतनमूल की अपेक्षा से तीन क्रियाएँ सम्भव हैं।' / नवम शतक : चौतीसवाँ उद्देशक समाप्त // नवम शतक समाप्त। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 492 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org