________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [16 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीव को प्राभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ? [16 उ.] गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं। 17. पुढविक्काइए णं भंते ! आउक्काइयं आगममाणे वा० ? एवं चेव / [17 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीवों को प्राभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छवास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हुए कितनी क्रिया बाले होते हैं ? [17 उ.] हे गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से ही जानना चाहिए / 18. एवं जाव वणस्सइकाइयं / [18] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना चाहिए / 19. एवं आउक्काइएण वि सव्वे वि भाणियन्वा / [16] इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के साथ भी पृथ्वीकायिक आदि सभी का कथन करना चाहिए। 20. एवं तेउक्काइएण वि। [20] इसी प्रकार तेजस्कायिक के साथ भी पृथ्वीकायिक आदि का कथन करना चाहिए। 21. एवं वाउक्काइएण वि। [21] इसी प्रकार वायुकायिक जीवों के साथ भी पृथ्वी कायिक आदि का कथन करना चाहिए। 22. वणस्सइकाइए णं भंते ! वणस्सइकाइयं चेव आणममाणे वा० ? पुच्छा। गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चकिरिए, सिय पंचकिरिए। [22 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों को आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ? 22 उ.] गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित पांच क्रिया वाले होते हैं। विवेचन-श्वासोच्छ्वास में क्रियाप्ररूपणा-पृथ्वीकायिकादि जीव पृथ्वीकायिकादि जीवों को श्वासोच्छवासरूप में ग्रहण करते हुए, छोड़ते हुए, जब तक उनको पीड़ा उत्पन्न नहीं करते, तब तक कायिकी आदि तीन क्रियाएँ लगती हैं, जब पीड़ा उत्पन्न करते हैं तव पारितापनिकी-सहित चार क्रियाएँ लगती हैं और जब उन जीवों का वध करते हैं तब प्राणातिपातिकी सहित पांचों क्रियाएँ लगती हैं। 1. (क) पांच क्रियाएँ इस प्रकार हैं-(१) कायिकी, (2) प्राधिकरणिकी, (3) प्राद्वेषिकी, (4) पारितापनिकी और (5) प्राणातिपातिकी। (ख) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 492 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org