________________ चउत्तीसइमो उद्देसो : पुरिसे चौंतीसवाँ उद्देशक : पुरुष पुरुष और नोपुरुष का घातक उपोद्घात 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वदासी [1] उस काल और उस समय में राजगृह नगर था / वहाँ भगवान गौतम ने यावत् भगवान् से इस प्रकार पूछा-- पुरुष के द्वारा प्रश्वादिघात सम्बन्धी प्रश्नोत्तर 2. [1] पुरिसे णं भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसं हणति, नोपुरिसं हणति ? गोयमा ! पुरिसं पि हणति, नोपुरिसे वि हणति / [2-1 प्र.] भगवन् कोई पुरुष, पुरुष की घात करता हुआ क्या पुरुष की ही घात करता है अथवा नोपुरुष (पुरुष के सिवाय अन्य जीवों) की भी घात करता है ? 2-1 उ.] गौतम ! वह (पुरुष) पुरुष की भी घात करता है और नोपुरुष की भी धात करता है। [2] से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ 'पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ' ? गोतमा ! तस्स णं एवं भवइ--‘एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि' से णं एगं पुरिसं हणमाणे प्रणेगे जीवे हणइ / से तेणळेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ 'पुरिसं पि हणइ नोपुरिसे वि हणति'। [2.2 प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि वह पुरुष की भी घात करता है, नोपुरुष की भी घात करता है ? / [2-2 उ.] गौतम ! (घात करने के लिए उद्यत) उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ही पुरुष को मारता हूँ; किन्तु वह एक पुरुष को मारता हुअा अन्य अनेक जीवों को भी मारता है / इसी दृष्टि से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि वह घातक, पुरुष को भी मारता है और नोपुरुष को भी मारता है।। 3. [3] पुरिसे णं भंते ! प्रासं हणमाणे कि आसं हणइ, नोमासे वि हणइ ? गोयमा! प्रासं पि हणई, नोमासे वि हणइ। [3-1 प्र. | भगवन् ! अश्व को मारता हुअा कोई पुरुष क्या अश्व को ही मारता है या नोप्रश्व (अश्व के सिवाय अन्य जीवों को भी) मारता है ? [3.1 उ.] गौतम ! वह (अश्वघात के लिए उद्यत पुरुष) अश्व को भी मारता है और नोअश्व अश्व के अतिरिक्त दूसरे जीवों) को भी मारता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org