________________ 570 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] से केपट्टेणं ? अट्ठो तहेव / [3-2 प्र. भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? [3-2 उ.] गौतम ! इसका उत्तर पूर्ववत् समझना चाहिए। 4. एवं हस्थि सीहं वग्धं जाय चिल्ललगं। [4] इसी प्रकार हाथी, सिंह, व्याघ्र (बाघ) यावत् चित्रल तक समझना चाहिए। 5. [1] पुरिसे णं भंते ! अन्नयरं तसपाणं हणमाणे कि अन्नयरं तसपाणं हणइ, नोअन्नयरे तसे पाणे हणइ ? गोयमा ! अन्नयरं पि तसपाणं हणइ, नोअन्नयर वि तसे पाणे हणइ / [5-1 प्र.] भगवन् ! कोई पुरुष किसी एक त्रस प्राणी को मारता हुअा क्या उसी त्रसप्राणी को मारता है, अथवा उसके सिवाय अन्य त्रसप्राणियों को भी मारता है ? (5.1 उ.] गौतम ! वह उस सप्राणी को भी मारता है और उसके सिवाय अन्य त्रसप्राणियों को भी भारता है। [2] से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चई 'अन्नयर पितसपाणं [हति] नोअन्नयरे वि तसे पाणे हणई? गोयमा ! तस्स णं एवं भवइएवं खलु अहं एगं अन्नयरं तसं पाणं हणामि, से णं एगं अन्नयरं तसं पाणं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ / से तेण?णं गोयमा! तं चेव / एए सव्वे वि एक्कगमा / [5.2 प्र.] भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं कि वह पुरुष उस सजीव को भी मारता है और उसके सिवाय अन्य त्रसजीवों को भी मार देता है। [5-2 उ.] गौतम ! उस त्रसजीव को मारने वाले पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं उसी त्रसजीव को मार रहा हूँ, किन्तु वह उस त्रसजीव को मारता हुआ, उसके सिवाय अन्य अनेक त्रसजीवों को भी मारता है। इसलिए, हे गौतम ! पूर्वोक्तरूप से जानना चाहिए / इन सभी का एक समान पाठ (पालापक) है। 6. [1] पुरिसे गं भंते ! इसि हणमाणे कि इसि हणइ, नोइसि हणइ ? गोयमा ! इसि पि हणइ नोइसि पि हणइ / [6-1 प्र. भगवन् ! कोई पुरुष, ऋषि को मारता हुआ क्या ऋषि को ही मारता है, अथवा नोऋषि (ऋषि के सिवाय अन्य जीवों) को भी मारता है ? [6-1 उ.] गौतम ! वह (ऋषि को मारने वाला पुरुष) ऋषि को भी मारता है, नोऋषि को भी मारता है। [2] से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव नोइसि पि हणइ ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवइएवं खलु अहं एग इसि हणामि, से णं एग इसि हणमाणे अणंते जीवे हणइ से तेणोणं निक्खेवओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org