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________________ नवम शतक : उद्देशक-३३ ] [563 को अज्ञान के अन्धेरे में धकेला / फलतः अन्तिम समय में उक्त पाप का पालोचन-प्रतिक्रमण न करने से मर कर लान्तक कल्प में किल्विषी देव हुआ।' कठिन शब्दों का भावार्थ- आयाए-अपने आप, स्वयमेव / अवक्कमइ-चला गया / असम्भावभावणाहि असद्भावों की उद्भावनाओं से--प्रकट करने से / मिच्छत्ताभिणिवेसेहिमिथ्यात्व के अभिनिवेशों से (असत्य के दृढ़ हठाग्रह से) वुग्गाहेमाणे-भ्रान्त (गुमराह) करता हुआ या सिद्धान्तविरुद्ध हटाग्रह युक्त करता हुआ। चुप्पाएमाणे--विरुद्ध (मिथ्या) ज्ञानयुक्त या दुर्विदाध करता हुआ / अणालोइय-पडिक्कते -- आलोचना और प्रतिक्रमण नहीं करने से अताणं असेइ---अपने शरीर को झोंक दिया। तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता- अनशन से तीस वार के भोजन का छेदन करते (भोजन से सम्बन्ध काटते हुए)।... किल्विषिक देवों में उत्पत्ति का भगवत्समाधान-- 103. तए णं से भगवं गोयमे जमालि अणगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुपियाणं अंतेवासी कुसिस्से जमाली णामं अणगारे, सेणं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए ? कहिं उववन्ने ? 'गोयमा' दिसमणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी--एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी कुसिस्से जमालो नाम अणगारे से णं तदा मम एवं आइक्खमाणस्स 4 एयमढं णो सद्दहइ गो पत्तियइ णो रोएइ, एयम→ असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोच्च पि मम अंतियाओ पायाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता बहि असम्भावुभावाहि तं चेव जाव देवकिब्बिसियत्ताए उववन्ने। [103) तदनन्तर जमालि अनगार को कालधर्म प्राप्त हुअा जान कर भगवान् गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और भगवान् महावीर को वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा-[प्र०] भगवन् ! यह निश्चित है कि जमालि अनगार आप देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य था / भगवन् ! वह जमालि अनगार काल के समय काल करके कहाँ गया है, कहाँ उत्पन्न हुआ है ? [उ०] हे गौतम ! इस प्रकार सम्बोधित करके श्रमण भगवान् महावीर ने भगवान् / वामी से इस प्रकार कहा गौतम ! मेरा अन्तेवासी जमालि नामक अनगार वास्तव में कृशिष्य था / उस समय मेरे द्वारा (ससिद्धान्त) कहे जाने पर यावत् प्ररूपित किये जाने पर उसने मेरे कथन पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की थी। उस (पूर्वोक्त) कथन पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि न करता हया दूसरी बार भी वह अपने आप मेरे पास से चला गया और बहुत-से असद्भावों के प्रकट करने से, इत्यादि पूर्वोक्त कारणों से यावत् वह काल के समय काल करके किल्विषिक देव के रूप में उत्पन्न हुमा है। 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. 1 (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. 479 2. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 489 (ख) भगवती. भा. 4 (पं. घेवरचन्दजी), पृ. 1762 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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