________________ 562 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भगवान् ने लोक को कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत बताया है, इसी प्रकार जीव को भी कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत सिद्ध किया है।' कठिन शब्दों का भावार्थ-कलुससमावन्ने कालुष्य से युक्त / सेलसि-शैल-पर्वत से / थूभंसि--स्तूप से / आवरिज्जइ-आवृत होता है / णिवारिज्जइ-रोका जाता है / वागरणाई वागरेहि-व्याकरणों----प्रश्नों का व्याकरण - समाधान या उत्तर दो। णो संचाएति-समर्थ नहीं होता / पमोक्ख-उत्तर या समाधान / एयप्पगारं—इस प्रकार की / अव्वए-अव्यय / अवट्ठिए--- अवस्थित 2 मिथ्यात्वग्रस्त जमालि को विराधकता का फल 102. तए णं से जमाली अणगारे समस्स भगवओ महावीरस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयमट्ठ णो सद्दहइ णो पत्तियइ णो रोएइ, एयमझें असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोच्चं पि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमइ, दोच्चं पि आयाए अवक्कमित्ता बहूहि असम्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसे हि य अपाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणे बुप्पाएमाणे बहूई वासाइं सामग्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं भूसेइ, अ० भूसेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति, छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितीएसु देवकिब्बिसिएसु देवेसु देवकिबिसियत्ताए उववन्ने। [102] श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा जमालि अनगार को इस प्रकार कहे जाने पर, यावत् प्ररूपित करने पर भी उसने (जमालि ने) इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की और श्रमण भगवान महावीर की इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं करता हुआ जमालि अनगार दूसरी बार भी स्वयं भगवान् के पास से चला गया / इस प्रकार भगवान् से स्वयं पृथक् विचरण करके जमालि ने बहुत-से असद्भूत भावों को प्रकट करके तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेशों (हठाग्रहों) से अपनी आत्मा को, पर को तथा उभय (दोनों) को भ्रान्त (गुमराह) करते हुए एवं मिथ्याज्ञानयुक्त करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन किया। अन्त में अर्द्धमास (15 दिन) की संलेखना द्वारा अपने शरीर को कृश करके तथा अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन (त्याग) करके, उस स्थान (पूर्वोक्त मिथ्यात्वगत पाप) की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना ही, काल के समय में काल (मृत्यु प्राप्त) करके लान्तक कल्प (देवलोक) में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवरूप में उत्पन्न हुना। विवेचन-भगवदवचनों पर अश्रद्धालु मिथ्यात्वग्रस्त जमालि की मति-गति - प्रस्तुत सू. 102 में प्रतिपादन किया गया है कि भगवान् महावीर द्वारा सद्भावनावश समझाने एवं सत्सिद्धान्त बताने पर भी जमालि मिथ्यात्वग्रस्त होने के कारण मिथ्या प्ररूपणा करने लगा, उसने जनता 1. पियापण्णत्तिसुत्तं मूलपाठ-टिप्पण) भा. 1, पृ. 479 2. भगवतीसूत्रम् तृतीय खण्ड (पं भगवानदास दोशी), 181 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org