________________ नवम शतक : उद्देशक 33] [561 [100] भगवान् गौतम द्वारा इस प्रकार (दो प्रश्नों के) जमालि अनगार से कहे जाने पर वह (जमालि) शंकित एवं कांक्षित हुआ, यावत् कलुषित परिणाम बाला हुआ / वह भगवान् गौतमस्वामी को (इन दो प्रश्नों का) किञ्चित् भी उत्तर देने में समर्थ न हुअा / (फलतः) वह मौन होकर चुपचाप खड़ा रहा / 101. 'जमाली' ति समणे भगवं महावीरे जमालि अणगारं एवं वयासी-अस्थि णं जमाली ! ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था जे णं पभू एवं बागरणं वागरित्तए जहा णं अहं, नो चेव णं एयप्पगारं भासं भासित्तए जहा णं तुमं / सासए लोए जमाली ! जंणं कयादि णासि ण, कयावि ण भवति ण, न कदावि ण भविस्सइ; भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवढिए णिच्चे / असासए लोए जमाली! जओ ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ, उस्सप्पिणी भक्त्तिा ओसप्पिणी भवइ / सासए जीवे जमाली! जंणं न कयाइ णासि जाव णिच्चे / असासए जीवे जमाली ! जंण नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ, तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवइ, मणुस्से भक्त्तिा देवे भवइ। [101] (तत्पश्चात) श्रमण भगवान् महावीर ने जमालि अनगार को सम्बोधित करके यों कहा-जमालि ! मेरे बहुत-से श्रमण निर्ग्रन्थ अन्तेवासी (शिष्य) छद्मस्थ (असर्वज्ञ) हैं जो इन प्रश्नों का उत्तर देने में उसी प्रकार समर्थ हैं, जिस प्रकार मैं हूँ, फिर भी (जिस प्रकार तुम अपने आपको सर्वज्ञ अर्हत जिन और केवली कहते हो ;) इस प्रकार की भाषा वे नहीं बोलते / जमालि ! लोक शाश्वत है, क्योंकि यह कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा भी नहीं और कभी न रहेगा, ऐसा भी नहीं है; किन्तु लोक था, है और रहेगा / यह ध्र व, नित्य, शाश्वत, अक्षय, अव्यय अवस्थित और नित्य है। (इसी प्रकार) हे जमालि ! (दुसरी अपेक्षा से) लोक अशाश्वत (भी) है, क्योंकि अवपिणी काल होकर उत्सपिणी काल होता है, फिर उत्सपिणी काल (व्यतीत) होकर अवसर्पिणी काल होता है। हे जमालि ! जीव शाश्वत है; क्योंकि जीव कभी (किसी समय) नहीं था, ऐसा नहीं है ; कभी नहीं है , ऐसा नहीं और कभी नहीं रहेगा. ऐसा भी नहीं है; इत्यादि यावत् जीव नित्य है। (इसी प्रकार) हे जमालि ! (किसी अपेक्षा से) जीव अशाश्वत (भी) है, क्योंकि वह नै रयिक होकर तिर्यञ्चयोनिक हो जाता है, तिर्यञ्च योनिक होकर मनुष्य हो जाता है और (कदाचित्) मनुष्य हो कर देव हो जाता है। विवेचन-गौतम द्वारा प्रस्तुत दो प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ-जमालि का भगवान् समाधान-प्रस्तत सत्रों में यह प्रतिपादन किया गया है कि जमालि नगार के सर्वज्ञता के दावे को असत्य सिद्ध करने हेत गौतमस्वामी केवलज्ञान का स्वरूप बताकर दो प्रश्न प्रस्तुत करते हैं। जिसका उत्तर न देकर जमालि मौन हो जाता है। फिर भ. महावीर उसे सर्वज्ञता का झूठा दावा न करने के लिए समझाकर उसे लोक और जीव की शाश्वतता-अशाश्वतता समझाते हैं।' 1. वियाहपणत्तिसुत्तं भा. 1 (मू. पा. टिप्पण), पृ. 479 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org