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________________ 560] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पास पाया / बह भगवान् महावीर से न तो अत्यन्त दूर और न अतिनिकट खड़ा रह कर भगवान् से इस प्रकार कहने लगा--जिस प्रकार प्राप देवानुप्रिय के बहुत-से शिष्य छद्मस्थ रह कर छद्मस्थ अवस्था में ही (गुरुकुल से) निकल कर विचरण करते हैं, उस प्रकार मैं छद्मस्थ रह कर छद्मस्थ अवस्था में निकल कर विचरण नहीं करता; मैं उत्पन्न हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन को धारण करने वाला अर्हत्, जिन, केवली हो कर केवली-(अवस्था में निकल कर केवली-) विहार से विचरण कर रहा हूँ, अर्थात् मैं केवली हो गया हूँ। विवेचन केवलज्ञानी होने का झूठा दावा--प्रस्तुत सू. 68 में यह निरूपण किया गया है कि जमालि अनगार स्वस्थ एवं सशक्त होने पर श्रावस्ती से भगवान् के पास चंपा पहुँचा और उनके समक्ष अपने आपको केवलज्ञान प्राप्त होने का दावा करने लगा।' कठिन शब्दों का भावार्थ - हट हृष्टपुष्ट / बलियसरीरे- शरीर से बलिष्ठ / छउमत्थाबक्कमणेणं अवक्कंते - छमस्थ - असर्वज्ञ रूप से अपक्रमण (अर्थात् गुरुकुल से निकल कर विचरण करते हैं / केवलिप्रवक्कमणेणं अवक्कते-सर्वज्ञ (केवली) रूप से अपक्रमण करके विचर रहा हूँ।* गौतम के दो प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ जमालि का भगवान द्वारा सैद्धान्तिक समाधान--- ___ 99. तए णं भगवं गोयमे जमालि अणणारं एवं क्यासि-जो खलु जमालो! केवलिस्स गाणे वा दसणे वा सेलसि वा थंभंसि वा थभंसि वा आवरिज्जइ वा णिवारिज्जइ वा / जइ णं तुमं जमाली! उप्पन्नणाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कते तो णं इमाइं दो वागरणाई वागरेहि, 'सासए लोए जमाली! असासए लोए जमाली ! ? सासए जीवे जमाली ! असासए जीवे जमाली! ? [16] इस पर भगवान् गौतम ने जमालि अनगार से इस प्रकार कहा-हे जमालि ! केवली का ज्ञान या दर्शन पर्वत (शैल), स्तम्भ अथवा स्तुप (आदि) से अवरुद्ध नहीं होता और न इनसे रोका जा सकता है। तो हे जमालि ! यदि तुम उत्पन्न - केवलज्ञान-दर्शन के धारक, अर्हत, जिन और केवली हो कर केवली रूप से अपक्रमण (गुरुकुल से निर्गमन) करके विचरण कर रहे हो तो इन दो प्रश्नों का उत्तर दो-(१) जमालि ! लोक शाश्वत है या अशाश्वत है? एवं (2) जमालि! जीव शाश्वत है अथवा अशाश्वत है ? 100. लए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए जाव कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था, यो संचाएति भगवओ गोयमस्स किचि वि पमोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीए संचिट्ठइ। 1, वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भा. 1 (मू. पा. टिप्पण), पृ. 478 2. (क) भगवती, भा. 4 (पं वेवरचन्दजी), प्र. 1759 (ख) छउमत्थावक्कमणेणं ति-छद्मस्थानां सतामपक्रमणं-- गुरुकुलान्निर्गमन छदमस्थापक्रमणं तेन / -भगवती. अ. वत्ति, पत्र 488 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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