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________________ 558] [व्याख्याप्रशप्तिसून प्ररूपणा करते हैं कि चलमान चलित है, उदीर्यमाण उदीरित है, यावत् निर्जीयमाण निर्जीर्ण है, यह कथन मिथ्या है; क्योंकि यह प्रत्यक्ष दीख रहा है कि जब तक शय्या-संस्तारक बिछाया जा रहा है, तब तक वह बिछाया गया नहीं है, (अर्थात्-) बिछौना जब तक 'बिछाया जा रहा हो', तब तक वह 'बिछाया गया' नहीं है / इस कारण 'चलमान' 'चलित' नहीं, किन्तु 'प्रचलित' है, यावत् 'निर्जीर्यमाण' ीिर्ण' नहीं, किन्तु 'अनिर्जीणं' है। इस प्रकार विचार कर श्रमण-निर्ग्रन्थों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! श्रमण भगवान् महावीर जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि 'चलमान' 'चलित' (कहलाता) है; (इत्यादि पूर्ववत् सब कथन करना) यावत् (वस्तुतः) निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण नहीं, किन्तु अनिर्जीर्ण है। विवेचन--जमालि को शय्यासंस्तारक के निमित्त से सिद्धान्त-विरुद्ध स्फुरणा--प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 63 से 16 तक) में निरूपण है कि प्रबलवेदनाग्रस्त जमालि अनगार के आदेश पर श्रमण बिछौना बिछाने लगे / अभी बिछाने का कार्य समाप्त नहीं हुआ था, तभी जमालि के पुनः पूछने पर उन्हें कहा कि बिछौना बिछा नहीं, बिछाया जा रहा है, इस पर से जमालि को सिद्धान्त-विरुद्ध एकान्त कि भगवान महावीर का 'चलमान' को 'चलित' कहने का सिद्धान्त मिथ्या है; मेरा सिद्धान्त यथार्थ है, क्योंकि यह प्रत्यक्ष है कि जो बिछौना बिछाया जा रहा है, उसे 'बिछाया गया नहीं कहा जा सकता है।' विशेषार्थ- बलियतरं वेयणाए अभिभूए--प्रबलतर वेदना से अभिभूत / सेज्जासंथारगं-शयन के लिए संस्तारक (बिछौना) / कज्जमाणे अकडे-जो क्रियमाण है, वह कृत नहीं। संथरिज्जमाणे असंथरिए-बिछाया जारहा है, वह बिछाया गया नहीं है / कुछ श्रमणों द्वारा जमालि के सिद्धान्त का स्वीकार, कुछ के द्वारा अस्वीकार 97. तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स अत्थेगइया समणा निग्गंथा एयमट्ठ सद्दहंति पत्तियंति रोयंति / अत्थेगइया समणा निग्गंथा एयमढें णो सद्दहति णो पत्तियंति णो रोयंति / तत्थ णं जे ते समणा निगंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमझें सद्दहति पत्तियंति रोयंति ते णं जमालि चेव अणगारं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति / तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमझें णो सद्दहंति णो पत्तियंति णो रोयंति ते णं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुचि चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा जेणेव चंपानयरी जेणेव पुष्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करित्ता वंदंति, णमंसंति 2 समणं भगवं महावोरं उवसंपज्जित्ताणं विहरति / [17] जमालि अनगार द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर यावत् प्ररूपणा किये जाने पर कई श्रमण-निर्ग्रन्थों ने इस (उपर्युक्त) बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि को तथा कितने ही श्रमण-निर्ग्रन्थों ने इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि नहीं की। उनमें से जिन श्रमण-निर्गन्थों ने जमालि अनगार 1. वियाहपण्णत्ति. भा. 1, मू. पा. टि., पृ. 477 2. भगवती. अ. वत्ति, पब 486-487 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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