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________________ 552] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र छोड़ कर अनगार धर्म में प्रवजित हो रहा है / इसलिए हम ग्राप देवानुप्रिय को यह शिष्यभिक्षा देते हैं / आप देवानुप्रिय इस शिष्य रूप भिक्षा को स्वीकार करें / विवेचन --दीक्षार्थी जमालिकुमार भगवान के चरणों में सपित--प्रस्तुत दो (77-78) सत्रों में वर्णन कि शिविका द्वारा जमालिकमार के भगवान की सेवा में पहुँचने / पर उसके मातापिता ने भगवान् के चरणों में शिष्य भिक्षा के रूप में समर्पित किया। 1 / 79. तए णं समणे भगवं महावीरे तं जमालि खत्तियकुमारं एवं क्यासी-अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं / [6] इस पर श्रमण भगवान् महावीर ने उस क्षत्रियकुमार जमालि से इस प्रकार कहा-- "हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसा करो, किन्तु (धर्मकार्य में) विलम्ब मत करो।" 80. लए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुळे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसोभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरण-मल्लालंकारं प्रोमुयइ। [80 भगवान् के ऐसा कहने पर क्षत्रियकुमार जमालि हर्षित और तुष्ट हुआ; तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा कर यावत् वन्दना नमस्कार कर, उत्तर-पूर्वदिशा (ईशानकोण) में गया / वहाँ जा कर उसने स्वयं ही आभूषण, माला और अलंकार उतार दिये / 81. तते णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणं पडसाडएणं आभरण-मल्लालंकारं पडिच्छति, पडिच्छित्ता हार-वारि जाब विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी जमालि खत्तियकुमार एवं वयासो-'घडियन्वं जाया !, जइयत्वं जाया !, परक्कमियन्वं जाया!, अस्सि च णं अछे जो पमायेतव्वं' ति कटु जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मा-पियरो समणं भगवं महावीरं वदंति णमंसंति, बंदित्ता णमंसित्ता, जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। 81] तत्पश्चात् जमालि क्षत्रियकुमार की माता ने उन आभूषणों, माला एवं अलंकारों को हंस के चिह्न वाले एक पटशाटक (रेशमी वस्त्र) में ग्रहण कर लिया और फिर हार, जलधारा इत्यादि के समान यावत् प्रांसू गिराती हुई अपने पुत्र से इस प्रकार बोली-हे पूर्व ! संयम में चेष्टा करना, पुत्र ! संयम में यत्न करना; हे पुत्र ! संयम में पराक्रम करना। इस (संयम के विषय में जरा भी प्रमाद न करना / इस प्रकार कह कर क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार करके जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस चले गए। विवेचन -- भगवान द्वारा दीक्षा की स्वीकृति, माता द्वारा जमालि को संयमप्रेरणा प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 76 से 81 तक) में भ. महावीर द्वारा जमालि की दीक्षा की स्वीकृति के संकेत, 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मू. पा. टिप्पण) भा. 1, पृ. 474 2. 'जाव' पद द्वारा सूचित पार -- धारा-सिंदुबार-छिनमुत्तालिपयासाई अंमूणि / -..प्र. वृ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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