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________________ नवम शतक : उद्देशक-३३) यावत् सार्थवाह प्रभृति तथा बहुत-से लोग यावत् गाते-बजाते, हंसते-खेलते चल रहे थे।] (इस प्रकार) क्षत्रियकुमार जमालि क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर जाता हुआ, ब्राह्मणकुण्डग्राम के बाहर जहाँ बहुशालक नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, उस ओर गमन करने लगा। विवेचन--जमालिकुमार का सर्वऋद्धि सहित भगवान् को ओर प्रस्थान—प्रस्तुत सू. 75 में अत्यन्त ठाठबाठ, राजचिह्नों एवं सभी प्रकार के जनवर्ग के साथ भगवान महावीर की सेवा में ब्राह्मणकुण्ड को अोर विरक्त जमालिकुमार के प्रस्थान का वर्णन है।' कठिन शब्दों का भावार्थ-अभुग्गभिगारे-मागे कलश सिर पर ऊँचा उठाए हुए / पग्गहियतालियंटे ताड़पत्र के पंखे लिये हुए। ऊसवियसेतछत्ते - ऊंचा श्वेत छत्र धारण किया हुया | पवोइत-सेत-चामर-बालवीयणीए-श्वेत चामर और छोटे पखे दोनों ओर बिजाते हुए / णादितरवेणं-वाद्यों के शब्द सहित / पहारेत्थ गमणाए—गमन करने लगा 2 76. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स खत्तियकुडग्गाम नगरं मज्झमझेणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडग-तिग-चउक्क जाव' पहेसु बहवे अस्थिया जहा उववाइए जाव अभिनंदता य अभित्थुणता य एवं क्यासी-जय जय गंवा ! धम्मेणं, जय जय गंदा ! तवेणं, जय जय गंदा! भई ते, अभिग्गेहिं गाण-दसण-चरित्तमुत्तमेहि अजियाई जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समणधम्म, जियविग्यो वि य वसाह तं देव ! सिद्धिमझे, णिहणाहि य राग-दोसमले तवेणं धितिधणियबद्धकच्छ, माहि अट्टकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च धीर ! तिलोक्करंगमज्झे, पावय वितिमिरमणुतरं केवलं च गाणं, गच्छ य मोक्खं परं पदं जिणवरोवदिट्टेणं सिद्धिमम्गेणं अकुडिलेणं, हंता परीसहचमु, अभिभविय गामकंटकोवसग्गा णं, धम्मे ते अविग्घमत्थु / त्ति कट्ठ अभिनंदति य अभिथुणंति य / 76] जब क्षत्रियकुमार जमालि क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर जा रहा था, तब शृगाटक, त्रिक, चतुष्क यावत् राजमार्गों पर बहुत-से अर्थार्थी (धनार्थी), कामार्थी इत्यादि लोग, औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार इष्ट, कान्त, प्रिय अादि शब्दों से यावत् अभिनन्दन एवं स्तुति करते हुए इस प्रकार कहने लगे—'हे नन्द (आनन्ददाता)! धर्म द्वारा तुम्हारी जय हो ! हे नन्द ! तप के 1. वियाहपग्णात्तिसुत्तं भा. 1 (मूलपाठ-टिप्पण) पृ. 472 2. भगवती. भा. 4 (. घेवरचन्दजी), पृ. 1746 3. 'जाव' पद सूचित पाठ-—'चच्चर-चउम्मुह-महापह / ' 4. प्रौपपातिक सूत्र में वणित पाठ यावत अभिनंदता, तक- "कामस्थिया भोगस्थिया लाभत्थिया इडिसिया किट्रि सिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया बद्धमाणा पुसमाणवा ताहिं इवाहिं कंताहि पियाहिं मणणाहि मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपाहायणिज्जाहिं मिय-महुर-ांभीरगाहियाहिं अट्ठसइयाहिं ताहिं अपुणरुत्ताहि बग्गूहि अणवरयं अभिनंदंता य।" --ग्रीपपातिक सु. 32, पत्र 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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