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________________ 548] ग्यास्याप्रज्ञप्तिसूत्र [73] तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने स्नान आदि किया / यावत् वे विभूषित होकर उत्तम हाथी के कंधे पर चढ़े और कोरण्टक पुष्प की माला से युक्त छत्र धारण किये हुए, श्वेत चामरों से बिजाते हुए, घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर तथा महासुभटों के समुदाय से घिरे हुए यावत् क्षत्रियकुमार के पीछे-पीछे चल रहे थे। 74. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ महं आसा आसव (वा) रा, उभओ पासि गागा णागवरा, पिटुओ रहा रहसंगेल्ली। [74] साथ ही उस जमालि क्षत्रियकुमार के आगे बड़े-बड़े और श्रेष्ठ धुड़सवार तथा उसके दोनों बगल (पार्व) में उत्तम हाथी एवं पीछे रथ और रथसमूह चल रहे थे। विवेचन–शिविका के आगे-पीछे एवं आसपास चलने वाले मंगलादि एवं जनवर्ग—प्रस्तुत सूत्रों में यह वर्णन है कि सहस्रपुरुषवाहिनी शिविका पर सबके प्रारूढ़ होने पर उसके आगे-आगे अष्ट मंगल, छत्र, पताका, चामर, विजयवैजयन्ती आदि तथा क्रमश: पीठ, सिंहासन तथा अनेक किंकर, कर्मकर, एवं यष्टि, भाला, चामर, पुस्तक, पीठ, फलक, वीणा, कुतप (कुप्पी) आदि लेकर चलने वाले एवं उनके पीछे दण्डी, मुण्डी, शिखण्डी, जटो, पिच्छी, हास्यादि करने वाले लोग गाते-बजाते, हंसते-हंसाते चले जा रहे थे। निष्कर्ष यह कि जमालिकुमार की शिविका के साथ-साथ अपार जनसमूह चल रहा था। ___उसके पीछे जमालिकुमार के पिता चतुरंगिणी सेना एवं भटादिवर्ग के साथ चल रहे थे। उनके पीछे श्रेष्ठ घोड़े, घुड़सवार, उत्तम हाथी, रथ तथा रथसमुदाय चल रहे थे / ' 75. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अब्भुग्गभिगारे पग्गहियतालियंटे ऊसवियसेतछत्ते पवीइतसेतचामरबालवीयणीए सव्विड्डीए जाव' णादितरवेणं खत्तियकुडग्गाम नगरं मझमझेणं जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। [75] इस प्रकार (दीक्षाभिलाषी) क्षत्रियकुमार जमालि सर्व ऋद्धि (ठाठबाठ) सहित यावत् बाजे-गाजे के साथ (वाद्यों के निनाद के साथ) चलने लगा। उसके आगे कलश और ताड़पत्र का पंखा लिये हुए पूरुष चल रहे थे / उसके सिर पर श्वेत छत्र धारण किया हुआ था। उसके दोनों ओर श्वेत चामर और छोटे पंखे बिजाए जा रहे थे। [इनके पीछे बहुत-से लकड़ी, भाला, पुस्तक यावत् वीणा आदि लिये हुए लोग चल रहे थे। उनके पीछे एक सौ आठ हाथी प्रादि, फिर लाठी, खड्ग, भाला आदि, लिये हुए पदाति (पैदल चलने वाले)-पुरुष तथा उनके पीछे बहुत-से युवराज, धनाढ्य, 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. 1 (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. 471-472 2 'जाव' पद सूचित पाठ-"तयाणंतरं च णं बहवे दिग्गाहा कुतग्गाहा जाब पुत्थयग्गाहा जाव वीणगाहा / तयाणंतरं च णं असयं गयाणं अटुसयं तुरगाणं अट्ठसयं रहाणं / तयाणंतरं च णं लउड-असि-कौतहत्थाणं बहूणं पायताणीणं पुरओ संपट्टियं / तयाणंतरं च णं बहवे राईसर-तलवर जाव सत्यवाहपभिइओ पुरओ संपट्टिया जाव पादितरवेणं / --प्रौषपातिक सू 32, पत्र 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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