________________ नयम शतक : उद्देशक-३३] [5.47 पउंजमाणा पुरओ अहाणपुवीए संपट्टिया। तदणंतरं च णं बहवे उग्गा भोगा जहा' उववाइए जाव महापुरिसबगुरा परिक्खिता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरो य मग्गओ य पासओ य अहाणुपुष्वोए संपट्टिया। [72] हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने योग्य उस शिविका पर जब जमालि क्षत्रियकुमार प्रादि सब प्रारूढ हो गए, तब उस शिविका के प्रागे-पागे सर्वप्रथम ये आठ मंगल अनुक्रम से चले, यथा-(१) स्वस्तिक, (2) श्रीवत्स, (3) नन्द्यावर्त्त, (4) वर्धमानक, (5) भद्रासन, (6) कलश, (7) मत्स्य और (8) दर्पण / इन आठ मंगलों के अनन्तर पूर्ण कलश चला; इत्यादि, औपपातिकसूत्र के कहे अनुसार यावत् गगनतलत्रुम्बिनी वैजयन्ती (ध्वजा) भी आगे यथानुक्रम से रवाना हुई। इस प्रकार जैसे औपपातिक सूत्र में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना चाहिए; यावत् आलोक करते हुए और जय-जयकार शब्द का उच्चारण करते हुए अनुक्रम से आगे चले / इसके पश्चात् बहुत से उग्रकुल के, भोगकुल के क्षत्रिय, इत्यादि औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् महापुरुषों के वर्ग से परिवृता होकर क्षत्रियकुमार जमालि के आगे, पीछे और आसपास चलने लगे / 73. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया व्हाए कतबलिकम्मे जाव विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरिटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उधुम्वमाणीहि उद्धवमाणोहि हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणोए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महया भड-चडगर जाय परिक्खित्ते जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ पिट्ठो अणुगच्छइ / -- -....-- . . . . .. . -. - कुतग्गाहा चामरगाहा पासग्गाहा चावग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगरगाहा पीढयग्गाहा वीणग्गाहा कूवयग्गाहा हडप्पगाहा पुरओ जहाणपुच्चोए संपट्रिया / तयाणंतरं च बहये दंडिणो मुणिणो सिहंडिणो जडिणो"पिच्छिणो हासकरा"डमरकरा""दवकरा' 'चाडकरा, कंम्पिया कोक्कूइआ"."वायंता व गायता यहासंता य भासिता य सासिता य"सावेता य रक्खंता य""" - औपपातिक सूत्र 31-32, प. 64, 74 / एतच्च वाचनान्तरे प्रायः साक्षाद् दृश्यते एव / तथेदमपरं तनवाधिकम तयाणंतरं च णं जच्चाणं वरमल्लिहाणाणं चंचुच्चियललियपुलयविक्कमबिलासियगईणं हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं थासगअमिलाणचमरगंडपरिमंडियकडीणं असयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुथ्वोए संपट्टियं / तयाणंतरं च णं ईसिदंताणं ईसिमताणं ईसिउन्नविसालधबलदंताणं कंचणकोसीपविदंतोक्सोहियाणं असयं गयकलहाणं पुरओ अहाणपुरवीए संपद्रियं / तयाणंतरं च णं सच्छताणं सज्मयाण सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराण सखिखिणीहेमजालपेरंतपरि विखत्तागं सनंदिघोसाणं हेमवचित्ततिणिसकणगनिज्जुत्तवारगाणं सुसंविद्धचक्कमंडलधुराणं कालायससुकयनेमिजंतकम्माणं आइनवरतुरगसुसंपउत्ताणं कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपग्गहियाणं सरसतबत्तीसतोणपरिमंडियाणं सकंकड़व.सगाणं सचावसरपहरणावरणभरियजुद्धसज्जाणं अनुसये रहाणं पुरओ अहाणघुवीए संपद्रियं / तयाणंतरं च असि-सत्तिकोत-तोमर-सूल-लउड-भिडिमाल-धणु-बाणसज्जं पायत्ताणीयं पुरओ अहाणपुबीए संपद्रियं / तयाणंतरं च णं बहवे राईसर-तलवर-कोड बिय-माइंबिय-इन्भ-सेट्टि-सेणावइ-सस्थवाहपभिइओ अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया पुरओ अहाणुपुग्वीए संपट्ठिया / 1. औषपातिक सूत्र में यह पाठ इस प्रकार है--"राइना खत्तिया इक्खागा नाया कोरम्या।" -~ीपपातिक सू. 27 प. 58-59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org