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________________ {व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [66] जमालि क्षत्रियकुमार के पिता के (आदेश से) कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये हुए वे एक हजार तरुण सेवक हर्षित और सन्तुष्ट हो कर, स्नानादि से निवृत्त हो कर बलिकर्म, कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त करके एक सरीखे आभूषण और वस्त्र तथा वेष धारण करके जहाँ जमालि क्षत्रियकुमार के पिता थे, वहाँ आए और हाथ जोड़ कर यावत उन्हें जय-विजय शब्दों से बधा कर इस प्रकार बोले-हे देवानुप्रिय ! हमें जो कार्य करना है. उसका आदेश दीजिए। 70. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया तं कोडुबियवरतरुणसहस्सं एवं वदासीतुम्भे णं देवाणुप्पिया ! हाया कयबलिकम्मा जाव गहियनिज्जोगा जमालिस्स खत्तियकमारस्स सीयं परिवहह। [70] इस पर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने उन एक हजार तरुण सेवकों को इस प्रकार कहा--हे देवानुप्रियो ! तुम स्नानादि करके यावत् एक सरीखे वेष में सुसज्ज होकर जमालिकुमार की शिविका को उठाओ। 71. तए णं ते कोडुबियपुरिसा (? तरुणा) जमालिस्स खत्तियकुमारस्स जाव पडिसुणेत्ता व्हाया जाव गहियनिज्जोगा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयं परिवहति / [1] तब वे कौटुम्बिक तरुण क्षत्रिय कुमार जमालि के पिता का आदेश शिरोधार्य करके स्नानादि करके यावत् एक सरीखी पोशाक धारण किये हुए (उन तरुण सेवकों ने) क्षत्रियकुमार जमालि की शिविका उठाई। विवेचन-कौटुम्बिक तरुणों को शिविका उठाने का आदेश-प्रस्तुत 5 सूत्रों (67 से 71 तक) में जमा लिकुमार के पिता द्वारा एक हजार तरुण सेवकों को बुलाकर शिविका उठाने का आदेश देने और उनके द्वारा उसका पालन करने का वर्णन है / ' कठिन शब्दों का भावार्थ-एगाभरण-वसण-गहिय-निज्जोया-एक-से आभरणों और वस्त्रों का (निर्योग) परिकर धारण किये हुए / अट्ठमंगलगा-आठ-आठ मंगल (मंगलमय वस्तुएँ)। गगणतलमणुलिहतो-आकाशतल को स्पर्श करने वाली / 72. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरुढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठमंगलगा पुरनो अहाणपुब्बीए संपट्टिया, तं०-सोस्थिय सिरिवच्छ जाव दप्पणा' / तदणंतरं च णं पुण्णकलभिगारं जहा उववाइए जाव गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टिया। एवं जहा" उववाइए तहेव भाणियव्वं जाव आलोयं च करेमाणा 'जय जय' सई च 1. वियाहपत्तिसुतं, भा. 1 (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. 469-470 2. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 479 3. 'जाव' पद सूचित पाठ-"नंदियावत्त-बद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ।" अ.व. 4. प्रौपपातिक सूत्र में पाठ इस प्रकार है-"दिवा य छत्तपडागा'...."सचामरादंसरइयआलोयदरिसणिज्जा बाउबविजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमण लिहती।" –औपपातिकमूत्र, कुणिकनृपतिनिर्गमनवर्णन पृ, 69 प्रथमपार्श्व सू. 31 / 5. पौषपातिक सूत्र में वणित पाठ इस प्रकार है-- "तयाणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं, पलबकोरंटमल्लदामो वसोहियं चंदमंडलनिभं समृसियं विमलमायवत्त पवरं सीहासणं च मणिरयणपायपीढं सपाउयाजुगसमाउत्त". बहुकिंकरकम्मगरपुरिसपायत्तपरिक्खित्त'पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं / तयाणंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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