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________________ 544] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र धवलं आयवत्तं गहाय सलीलं धारेमाणो धारेमाणी चिट्ठति / / 63, फिर क्षत्रियकुमार जमालि के पृष्ठभाग में (पोछे) शृगार के घर के समान, सुन्दर वेष वाली. मुन्दर गतिवाली, यावत् रूप और यौवन के विलास से युक्त तथा सुन्दर स्तन, जघन (जांघ), बदन (मुख), कर, चरण, लावण्य, रूप एव यौवन के गुणों से युक्त एक उत्तम तरुणी हिम (बर्फ), रजत (चादो), कुमुद, कुन्दपुष्प एवं चन्द्रमा के समान, कोरण्टक पुष्प को माला से युक्त, श्वेत छत्र (प्रातपत्र) हाथ में लेकर लोला-पूर्वक धारण करती हुई खड़ी हुई / 64. तए णं तस्स जमालिस्स उभयोपासि दुवे वरतरुणीसो सिंगारागारचार जाव कलियामो नाणामणि-कणग-रयण-विमलमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाम्रो चिल्लियाओ संखक-कुंदेंदु-दगरयअमयमयिफेणपुंजसन्निकासाओ चामराम्रो गहाय सलील बीयमाणीओ वीयमाणोओ चिट्ठति / 164 तदनन्तर जमालिकुमार के दोनों (दाहिनी तथा बाई) ओर शृगार के घर के समान, सुन्दर वेष वाली यावत् रूप-यौवन के विलास से युक्त दो उत्तम तरुणियां हाथ में चामर लिए हुए लीलासहित दुलाती हुई खड़ी हो गई। वे चामर अनेक प्रकार की मणियो, कनक, रत्नों तथा विशुद्ध एवं महामूल्यवान् तपनीय (लाल स्वर्ण) से निर्मित उज्ज्वल एव विचित्र दण्ड वाले तथा चमचमाते हुए (देदीप्यमान) थे और शंख, अंकरत्न, कुन्द-(मोगरा के) पुष्प, चन्द्र, जलबिन्दु, मथे हुए अमृत के फैन के पुज के समान श्वेत थे। 65. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स उत्तरपुरथिमेणं एगा बरतरुणी सिंगारागार जाव कलिया सेयं रयतामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगयमहामुहाकितिसमाणं भिगारं गहाय चिट्ठइ / [65 | और फिर क्षत्रियकुमार जमालि के उत्तरपूर्व (ईशानकोण) में शृगार के गृह के समान, उत्तम वेष वाली यावत् रूप, यौवन और विलास से युक्त एक श्रेष्ठ तरुणी पवित्र (शुद्ध) जल से परिपूर्ण , उन्मत्त हाथी के महामुख के आकार के समान श्वेत रजतनिर्मित कलश (भ गार) (हाथ में) लेकर खड़ी हो गई। 66. तए ण तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणपुरथिमेणं एगा वरतरुणी सिंगारागार जाव कलिया चित्तं कणगदंडं तालयंडं गहाय चिट्ठति / 66| उसके बाद क्षत्रियकुमार जमालि के दक्षिणपूर्व (प्राग्नेय कोण) में शृगार गृह के तुल्य यावत् रूप यौवन और विलास से युक्त एक श्रेष्ठ युवती विचित्र स्वर्णमय दण्ड वाले एक ताड़पत्र के पंखे को लेकर खड़ी हो गई। विवेचन--जमालिकुमार परिजनों आदि सहित शिविकारूढ हुआ प्रस्तुत सात सूत्रों (60 से 66 सू. तक) में जमालिकुमार तथा उसकी माता, धायमाता तथा अन्य तरुणियों के शिविका पर चढ़ कर यथास्थान स्थित हो जाने का वर्णन है।' 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मू. पा. टि.) भा. 1, पृ. 468-461 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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