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________________ नवम शतक : उद्देशक-३३] [543 [58] तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही अनेक सैकड़ो खभों से युक्त, लीलापूर्वक खड़ी हुई पुतलियों वाली, इत्यादि, राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित विमान के समान यावत्-मणि-रत्नों की घंटियों के समूह से चारों ओर से घिरी हुई, हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने योग्य शिविका (पालकी) (तैयार करके) उपस्थित करो और मेरी इस आज्ञा का पालन करके मुझे पुनः निवेदन करो। 59. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति / [59] इस आदेश को सुन कर कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार की शिविका तैयार करके यावत् (उन्हें) निवेदन किया। 60. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे केसालंकारेणं वत्थालंकारेण मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं चउबिहेणं अलंकारेण अलंकारिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सोहासणाओ अब्भुट्ठति, सोहासणाभो अब्भुठेत्ता सोयं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे सोयं दुल्हइ, दुरू हित्ता सीहासगवरंसि पुरत्थाभिमुहे सनिसचणे। [60 तत्पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार और प्राभरजालंकार इन चार प्रकार के अलंकारों से अलंकृत होकर तथा प्रतिपूर्ण अलंकारों से सुसज्जित हो कर सिंहासन से उठा / वह दक्षिण की ओर से शिविका पर चढ़ा और श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुंह करके आसीन हुआ। 61. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्म माया व्हाया कयबलिकम्मा जाव सरीरा हंसलक्खणं पडसाडगं गहाय सीयं अणुपदाहिणीकरेमाणी सीयं दुरूहइ, सीयं दुरूहित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणे पासे भद्दासणवरंसि सन्निसण्णा / [61] फिर क्षत्रियकुमार जमालि को माता स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत करके हंस के चिह्न वाला पटशाटक लेकर दक्षिण की ओर से शिविका पर चढ़ी और जमालिकुमार की दाहिनी ओर श्रेष्ठ भद्रासन पर बैठी।। 62. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मधाई पहाया जाव सरीरा रयहरणं च पडिग्रहं च गहाय सीयं अणुप्पदाहिणीकरेमाणी सीयं दुरूहइ, सीयं दुरूहित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स वामे पासे भद्दासणवरंसि सग्निसणा। [62 तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि को धायमाता ने स्नानादि किया, यावत् शरीर को अलंकृत करके रजोहरण और पात्र ले कर दाहिनी ओर से (अथवा शिविका की प्रदक्षिणा करती हुई) शिविका पर चढ़ी और क्षत्रियकुमार जमालि के बाई ओर श्रेष्ठ भद्रासन पर बैठी / / 63. तए गं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्टप्रो एगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय जाव' रूवजोव्वर्णावलासकलिया सुंदरथण हिम-रयत-कुमुद कुदेदुप्पगास सकोरेटमल्लदामं 1. 'जाव' पद-सूचित पाठ-"संगय-गय-हसिय-भणिय-चिट्ठिय-विलास-संलावुल्लावनिउणजुत्तो-वयारकुसला।" -प्र.व. 2. "सूदरथण इत्यनेन" "सुबरमण-जहण वयण-कर-चरण-णयण-लायष्ण-रूब-जोठवणगुणोववेय ति।" -- अ.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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