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________________ 540] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 54. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया तं कासवगं एवं वयासी-तुमं गं देवाणुप्पिया ! जमालिस खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेणं चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाउग्गे आगकेसे कप्पेहि। [54] इस पर क्षत्रियकमार जमालि के पिता ने उस नापित से इस प्रकार कहा--हे देवानुप्रिय ! क्षत्रिय कुमार जमालि के निष्क्रमण के योग्य अग्रकेश (सिर के आगे-आगे के बाल) चार अगुल छोड़ कर अत्यन्त यत्न पूर्वक काट दो। 55. तए णं से कासवए जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुठे करयल जाव एवं सामी! तहत्तागाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्य-पादे पक्खालेइ, सुरभिणा गंधोदएणं हत्थ-पादे पखालित्ता सुद्धाए अट्ठपडलाए पोत्तीए मुहं बंधइ, मुहं बंधित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेणं चउरंगुलवण्जे निवखमणपा उम्गे अगकेसे कप्पेइ / [55] क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के द्वारा यह आदेश दिये जाने पर वह नापित अत्यन्त हर्षित एवं तुष्ट हुआ और हाथ जोड़ कर यावत् (इस प्रकार) बोला--"स्वामिन् ! आपकी जैसी आज्ञा है, वैसा ही होगा;" इस प्रकार उसने विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया। फिर सुगन्धित गन्धोदक से हाथ-पैर धोए, पाठ पट वाले शुद्ध वस्त्र से मुंह बांधा और अत्यन्त यत्नपूर्वक क्षत्रियकुमार जमालि के निष्क्रमणयोग्य अग्रकेशों को चार अंगुल छोड़ कर काटा। विवेचन--नापित द्वारा जमालि का अग्रकेशकर्तन = प्रस्तुत तीन सत्रों में जमालि के पिता द्वारा नाई को बुला कर जमालि के निष्क्रमणयोग्य अग्रकेश काटने का आदेश देने पर वह बहुत प्रसन्न हुआ और विनयपूर्वक आदेश शिरोधार्य करके नहा-धोकर शुद्ध वस्त्र मुंह पर बांध कर यत्नपूर्वक उसने जमालि कुमार के अग्रकेश काटे / ' कठिन शब्दों का विशेषार्थ-संदिसंतु- आदेश दीजिए, बताइए / परेणं जत्तेणं = अत्यन्त यत्नपूर्वक / णिक्खमणपाडग्गे अम्गकेसे दीक्षित होने वाले व्यक्ति के आगे के केश चार अंगुल छोड़ कर काटे जाते थे, ताकि गुरु अपने हाथ से उनका लुञ्च न कर सकें, इसे निष्क्रमणयोग्य केशकर्तन कहा जाता था। कप्पेहि-काटो। अट्ठपडलाए पोत्तीए-आठ पटल (परत या तह) वाली पोतिका (मुखवस्त्रिका) से / 56. तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलवखणेणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ, अग्गकेसे पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ, सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेत्ता अम्गेहि वरेहि गंधेहि मल्लेहि अच्चेति, अच्चित्ता सुद्धवत्थेणं बंधेइ, सुद्धवत्थेणं बंधिता रयणकरंउगंसि पविखवति, पविखवित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तालिपगासाई सुवियोगदूसहाई अंसूई विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी एवं क्यासी-एस णं अम्हं जमालिस्स खत्तियकुमारस्स बहूसु तिहोसु य पव्वणीसु य उस्सवेसु य जपणेसु य छणेसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्सति इति कटु ओसीसगमूले ठवेति / 1. वियाहपष्णत्तिसुत्तं भा. 1 (मू. पा. टिप्पण), पृ. 466. 2. (क) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 476 (ख) भगवती. भा. 4 (पं. घेवरचंदजी), प्र. 737 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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