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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कठिन शब्दों का भावार्थ-- सभितरबाहिरियं-भीतर के सहित बाहर का / आसिय = पानी से सींचो (छिड़काव करो) / सम्मज्जिय-झाडू आदि से सफाई करो। उवलितं- लीपना / महत्थं-- महाप्रयोजन वाला / महग्धं महामूल्यवान / महरिहं - महान पुरुषों के योग्य या महापूज्य / निक्खमणाभिसेय-निष्क्रमणाभिषेक सामग्री को / उवट्ठवेह----उपस्थित करो या तैयार करो / 46. तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मा-पिघरो सीहासणवरंसि पुरस्थाभिमुहं निसीयावेंति, निसीयावेत्ता अट्टसएणं सोवणियाणं कलसाणं एवं जहा रायप्पसेणइज्जे' जाव अट्ठसएणं भोमिज्जाणं कलसाणं सविड्डीए जाव' रवेणं मह्या महया निवखमणाभिसेगेणं अभिरिचइ, निवखमणाभिसेगेण अभिसिचित्ता करयल जाव जएणं विजएणं वद्धाति, जएणं विजएणं वद्धावेत्ता एवं वयासी-भण जाया ! कि देमो? किं पयच्छामो ? किणा वा ते अट्ठो? [46] इसके पश्चात् जमालि क्षत्रियकुमार के माता-पिता ने उसे उत्तम सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बिठाया ! फिर एक सौ आठ सोने के कलशों से इत्यादि जिस प्रकार राजप्रश्नीयसूत्र में कहा है, तदनुसार यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों से सर्वऋद्धि (ठाठबाठ) के साथ यावत् (वाद्यों के) महाशब्द के साथ निष्क्रमणाभिषेक किया। निष्क्रमणाभिषेक पूर्ण होने के बाद (जमालिकुमार के माता-पिता ने) हाथ जोड़ कर जय. विजय-शब्दों से उसे बधाया। फिर उन्होंने उससे कहा- 'पुत्र! बताओ, हम तुम्हें क्या दे ? तुम्हारे किस कार्य में क्या, (सहयोग) द ? तुम्हारा क्या प्रयोजन है ?' 50. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासी-इच्छामि णं अम्म ! ताओ ! कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणि कासवगं च सद्दाविउं / [50] इस पर क्षत्रिय कमार जमालि ने माता-पिता से इस प्रकार कहा-हे माता-पिता ! मैं कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र मंगवाना चाहता हूँ और नापित को बुलाना चाहता हूँ / 51. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्त पिया कोड बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सिरिघरानो तिणि सयसहस्साई गहाय सयसहस्सेण सयसहस्सेणं कुत्तियावणाश्रो रयहरणं च पडिग्गहं च आणेह, सयसहस्सेणं च कासवगं सद्दावेह / 1. भगवती. अ. वनि.,पत्र 476 2. राजप्रश्नीयसूत्रानुसार पाठ यह है--"अट्टसएणं सुबष्णमयाण कलसाणं, अदृसएणं रुपमयाणं कलसाणं, असएण मणिमयाणं कलसाण, अदुसरणं मुबष्ण-रुपमयाणं कलसाणं, अटुसएणं सुबण्ण-मणिमयाणं कलसाणं, अट्टसएणं साप-मणिमयाणं कलसाणं, अट्टसएणं सुबण्ण-रुप्प-मणिमयाणं कलसाणं / " --रायपसेण इज्ज (गुर्जर ग्रन्थ) पृ. 241-242 कण्डिका१३५ 3. 'जाब' शब्दसूचित पाठ--- "सबजुईए""सब्बबलेणं""सब्वसमृदएणं सबरवेणं "सम्वविभूईए'"सम्वविभूसाए ..."सव्वसंभमेण "सम्वयुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सम्वडियसहसनिनाएणं महया इड्डीए महया जुईए महया बलेणं मया समुदएणं महया बरतुडिय-जमगसमगप्पवाइएणं."संख-पणव-पडह-भेरि-मल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरयमुइंग-दुदुहिनिग्धोसनाइय।"-भगवती. अ व. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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