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________________ नवम शतक : उद्देशक-३३] [537 विवेचन–निरुपाय माता-पिता द्वारा जमालि को दीक्षा की अनुमति प्रस्तुत सूत्र 45 में यह निरूपण किया गया है कि जमालि के माता-पिता जब अनुकूल और प्रतिकूल युक्तियों, तर्को, हेतुओं एव प्रेमानुरोधों से समझा-बुझा चुके और उस पर कोई प्रभाव न पड़ा, तब निरुपाय होकर उन्होंने दीक्षाग्रहण करने की अनुमति दे दी। कठिन शब्दों के भावार्थ प्रकामाई-अनिच्छा से, अनमने भाव से / निक्खमणं अणुमनित्था-दीक्षा ग्रहण करने के लिए अनुमति दी। जमालि के प्रवज्याग्रहण का विस्तृत वर्णन 46. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! खत्तियकुडग्गामं नगरं सभितरबाहिरियं प्रासियसम्मज्जिओवलित्तं जहा उववाइए जाव पच्चप्पिणंति / 46] तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाइबुहार कर जमीन की सफाई करके उसे लिपायो, इत्यादि प्रौपपातिक सूत्र में अंकित वर्णन के अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। 47. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्च पि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासो.--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महन्धं महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह / / 47] इसके पश्चात क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा भी उन कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और फिर उनसे इस प्रकार कहा- हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही जमालि क्षत्रियकुमार के महार्थ, महामूल्य, महाहं (महान् पुरुषों के योग्य) और विपुल निष्क्रमणाभिषेक की तैयारी करो। 48. तए णं ते कोड बियपुरिसा तहेव जाव पच्चप्पिणति / [48 | इस पर कौटुम्बिक पुरुषो ने उनकी प्राज्ञानुसार कार्य करके अाज्ञा वापस सौंपी। विवेचन --कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा नगर की सफाई एवं निष्क्रमणाभिषेक की तैयारी प्रस्तुत तीन सूत्रों (46 से 48 तक) में जमालि के पिता ने दोक्षा की आज्ञा देने के बाद नगर को पूर्ण साफसुथरा बनाने का और दीक्षाभिषेक की विधिवत् तैयारी का कौटुम्बिक पुरुषों को आदेश दिया, जिसका पालन उन्होंने किया / 1. वियाहपषणत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. 1, पृ. 464 2. भगवती अ. वृति, पत्र 472 3. उववाई मूत्र के अनुसार पाठ इस प्रकार है--"सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसित्त सित्तडयसम्मदरत्यंतरावणवीहियं....."मंचाइमंचकलिअं माणाविहरागउच्छियज्झय-पडागाइपडागमंडियं,... इत्यादि / " –औपपातिक सूत्र पत्र 61, सू. 29 4. विवाहपण्णत्तिसूत्तं (म. पा. टिप्पण) भा.१, पृ. 465 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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