________________ [ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जाव पव्वइहिसि / एवं खलु अम्म ! ताओ ! निग्गंथे पावयणे कोवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगपरम्मुहाणं विसयतिसियाणं दुरणुचरे, पागयजणस्स, धीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स नो खलु एत्थं किंचि वि दुक्करं करणयाए, तं इच्छामि णं अम्म ! ताओ ! तुभेहि अन्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए / [44] तब क्षत्रियकुमार जमालि ने माता-पिता को उत्तर देते हुए इस प्रकार कहा हे माता-पिता ! आप मुझे यह जो कहते हैं कि यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन सत्य है, अनुत्तर है, अद्वितीय है, यावत् तू समर्थ नहीं है इत्यादि यावत् बाद में प्रवजित होना; किन्तु हे माता-पिता ! यह निश्चित है कि क्लीबों (नामर्दो), कायरों, कापूरुषों तथा इस लोक में पासक्त और परलोक से पराछ मुख एवं विषयभोगों की तृष्णा वाले पुरुषों के लिए तथा प्राकृतजन (साधारण व्यक्ति) के लिए इस निर्ग्रन्थप्रवचन (धर्म) का आचरण करना दुष्कर है। परन्तु धीर (साहसिक), कृतनिश्चय एवं उपाय में प्रवृत्त पुरुप के लिए इसका आचरण करना कुछ भी दुष्कर नहीं है / इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप मुझे (प्रवज्याग्रहण की) आज्ञा दे दें तो मैं श्रमण भगवान् महावीर के पास दीक्षा ले लूं। विवेचन-- जमालि के द्वारा उत्साहपूर्ण उत्तर-जमालि क्षत्रियकुमार ने माता-पिता के द्वारा निर्गन्थधर्म-पालन की दुष्करता का उत्तर देते हुए कहा कि संयमपालन कायरों के लिए कठिन है, वीरों एवं दृढनिश्चय पुरुषों के लिए नहीं। अतः आप मुझे दीक्षा को प्राज्ञा प्रदान करें।' कठिन शब्दों का भावार्थ-कीवाणं क्लीब (मन्द संहनन वाले) लोगों के लिए / कापुरिसाणं-डरपोक मनुष्यों के लिए / इहलोगपडिबद्धाणं- इस लोक में आबद्ध-आसक्त / पागयजणस्स प्राकृतजन-साधारण मनुष्य के लिए / दुरणुचरे–माचरण करना दुष्कर है / धीरस्स--- धीर-साहसिक पुरुष के लिए / निच्छियस्स--यह अवश्य करना है, इस प्रकार के दृढ़ निश्चय वाले। ववासियस्स व्यवसित-उपाय में प्रवृत्त के लिए / करणयाए -संयम का आचरण करना / जपालि को प्रवज्याग्रहण की अनुमति दी 45. तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मा-पियरो जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकलाहि य बहूहि य आघवणाहि य पण्णवणाहि य सन्नवणाहि य विष्णवणाहि य प्राघवेत्तए वा जाव विष्णवेत्तए वा ताहे अकामाई चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स निक्खमणं अणुमनित्था। 45] जब क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता विषय के अनुकूल और विषय के प्रतिकूल बहुत-सी उक्तियों, प्रज्ञप्तियों, संज्ञप्तियों और विज्ञप्तियों द्वारा उसे समझा-बुझा न सके, तब अनिच्छा से उन्होंने क्षत्रियकुमार जमालि को दोक्षाभिनिष्क्रमण (दीक्षाग्रहण) की अनुमति दे दी। 1. वियाहपत्तिसुत्तं (मू. पा. टिप्पण), भा. 1, पृ. 464 2. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 472 (ख) भगवती. भा. 4 (पं. घेवरचन्दजी), पृ. 1731 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org