________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कठिन शब्दों का अर्थ--अमणाम=मन के विपरीत, अनिच्छनीय / प्रसुयपुत्वं पहले कभी नहीं सुनी हुई / सेयागय-रोमकूव-पगलंत-विलोणगत्ता- रोमकूपों में से झरते हए पसीने से शरीर तरबतर हो गया / सोगभरपवेवियंगमंगी = शोक के भार से अंग-अंग कांपने लगे। नित्तया = निस्तेज (मुआई हुई) / दोणविमणवयणा= उसका मुख दीन एवं विमन (उदास) हो गया। करयलमलिय व्ब कमलमाला हथेलियों से मदित की हुई कमलमाला के समान ! तक्खणअोलुग्ग-दुबल-सरीर-लायन्न-सुन्न-निच्छाया = उसी क्षण जिसका शरीर ग्लान एवं दुर्बल, लावण्य से शून्य एवं प्रभारहित हो गया / गयसिरिया = वह श्री (शोभा)-रहित हो गई। पसिढिल-भूसणपडत-खुण्णिय-संचुण्णिय-धवलवलय-पभट्ठ--उत्तरिज्जा = उसके आभूषण ढीले हुए, बेत वलय (कंगन) गिरकर चूर-चूर हो गए, शरीर से उत्तरीयवस्त्र (प्रोढना) सरक गया / मुच्छावसणढ़-चेतगुरुई = मूर्छावश उसकी चेतना (संज्ञा) नष्ट होने से शरीर भारी हो गया। सुकुमाल-विकिरणकेसहत्था = उसकी कोमल केशराशि बिखर गई / परसु-णियत्त व्व चंपगलता–कुल्हाड़ी से काटी हुई चंपा की बेल की तरह / निव्वत्तमहे व्व इंदलट्टी = जो महोत्सब पूर्ण हो गया हो उसके इन्द्रध्वज (दण्ड) के समान / विमुक्कसंधिबंधणा = शरीर के संधिबन्धन ढीले हो गए / कोट्टिमतलं सि= प्रांगन (कुट्टिम) के तल (फर्श) पर / ' माता-पिता के साथ विरक्त जमालि का संलाप--- 35. तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया ससंभमोत्तियाए तुरियं कंचमगारमुहविणिग्गयसीयलजलविमलधारापसिच्चमानिन्ववियगायलट्ठी उवखेवगतालियंटवीयणगणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउरपरिजणेणं आसासिया समाणी रोयमाणी कंदमाणी सोयमाणी विलवमाणी जमालि खत्तियकुमारं एवं बयासी तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इठे कंते पिए मणुष्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविऊसविये हिययनंदिजणणे उंबरपुष्फ पिव दुल्लभे सवणयाए किमंग पुण पासणयाए ? तं नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो तुम्भं खणमवि विप्पयोग, तं अच्छाहि ताव जाया ! जाव ताव अम्हे जीवामो; तओ पच्छा अम्हेहि कालगहि समाहि परिणयवये वडिय कुलवंसतंतुकज्जम्मि निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिसि / 35] इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि की व्याकुलतापूर्वक इधर-उधर गिरती हुई माता के शरीर पर शीघ्र ही दासियों ने स्वर्ण कलशों के मुख से निकली हुई शीतल एवं निर्मल जलधारा का सिंचन करके शरीर को स्वस्थ किया / फिर (बांस के बने हुए) उत्क्षेपकों (पंखों) तथा ताड़ के पत्तों से बने पंखों से जलकणों (फुहारों) सहित हवा की। तदनन्तर (मूर्छा दूर होते ही) अन्तःपुर के परिजनों ने उसे आश्वस्त किया। (मूच्र्छा दूर होते ही) रोती हुई, क्रन्दन करती हुई, शोक करती हुई, एवं विलाप करती हुई माता क्षत्रियकुमार जमालि से इस प्रकार कहने लगी--पुत्र ! तू हमारा इकलौता ही पुत्र है, (इसलिए) तू हमें इष्ट है, कान्त है, प्रिय है, 1. भगवती. भा. 4 (पं. घेवरचन्दजी) पृ. 1716-171 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org