________________ नवम शतक : उद्देशक-३३] [525 और रुचिकर लगा, इसलिए हे माता-पिता ! मैं संसार के भय से उद्विग्न हो गया हूँ, जन्म-मरण से भयभीत हुअा हूँ / अत: मैं चाहता हूँ कि आप दोनों की प्राज्ञा प्राप्त होने पर श्रमण भगवान् महावीर के पास मुण्डित होकर गृहवास त्याग करके अनगार धर्म में प्रवजित होऊँ। विवेचन-जमालि द्वारा संसारविरक्ति एवं दीक्षा की अनुमति का संकेत-भगवान् महावीर से धर्मोपदेश सुन कर जमालि सीधे माता-पिता के पास पाया। उनके समक्ष भगवान् के धर्म-प्रवचन की प्रशंसा की और उसके प्रभाव से स्वयं को वैराग्य उत्पन्न हुआ है, इसलिए माता-पिता से दीक्षा को प्राज्ञा देने का अनुरोध किया / यह सू. 31 से 33 तक वर्णन है।' संसारभउधिग्गे आदि पदों का भावार्थ संसारभउद्विग्गे = जन्म-मरण रूप संसार के भय से संवेग प्राप्त हुअा है / अभणुण्णाए समाणे-आपके द्वारा अनुज्ञा प्रदान होने पर / ' प्रव्रज्या का संकल्प सुनते ही माता शोकमग्न 34. तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माता तं अणिठें प्रकंतं अप्पियं प्रमणुष्णं अमणामं असुयपुव्वं गिरं सोच्चा निसम्म सेयागयरोमकूवपगलंतषिलोणगत्ता सोगभरपर्ववियंगमंगी नित्तेया दोणविमणक्यणा करयलमलिय व कमलमाला तक्खणओलुगदुब्बलसरीरलायन्नसुन्ननिच्छाया गयसिरीया पसिदिलभूसणपडतखुण्णियसंचुणियधवलवलयपग्भट्ठउत्तरिज्जा मुच्छावसणटुचेतगुरुई सुकुमालविकिण्णकेसहत्था परसुणियत्त ब्व चंपगलता निव्वत्तमहे व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि 'धस' ति सवंगेहि सन्निवडिया। [34] इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि की माता उसके उस (पूर्वोक्त) अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ, मन को अप्रिय और अश्रतपर्व (प्राघातकारक) वचन सुनकर और अवधारण करके (शोकमग्न हो गई / ) रोमकूप से बहते हुए पसीने से उसका शरीर भीग गया / शोक के भार से उसके अंग-अंग कांपने लगे। (चेहरे की कान्ति) निस्तेज हो गई / उसका मुख दीन और उन्मना हो गया / हथेलियों से मसली हुई कमलमाला की तरह उसका शरीर तत्काल मुर्मा गया एवं दुर्बल हो गया / वह लावण्यशून्य, कान्तिरहित और शोभाहीन हो गई / (उसके शरीर पर पहने हुए) आभूषण ढीले हो गए। उसके हाथों की धवल चूड़ियाँ (वलय) नीचे गिर कर चूर-चूर हो गई / उसका उत्तरीय वस्त्र (प्रोढना) अंग से हट गया / मूर्छावश उसकी चेतना नष्ट हो गई / शरीर भारी-भारी हो गया / उसकी सुकोमल केशराशि विखर गई / वह कुल्हाड़ी से काटी हुई चम्पकलता की तरह एवं महोत्सव समाप्त होने के बाद इन्द्रध्वज (दण्ड) की तरह शोभाविहीन हो गई। उसके सन्धिबन्धन शिथिल हो गए और वह एकदम धस करती हुई (धड़ाम से) सारे ही अंगों सहित धरती के फर्श पर गिर पड़ी। विवेचन दीक्षा की बात सुनकर शोकमग्न माता-जमालिकुमार (पुत्र) की प्रव्रज्या ग्रहण करने की बात सुनते ही मोह-ममत्ववश माता की जो अवस्था हुई और वह मूच्छित हो कर गिर पड़ी, इसका वर्णन प्रस्तुत सूत्र में है। 1. वियाहपण्णत्तिसुत्त, (मू. पा. टिप्पण) भा. 1, पृ. 459 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 467 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org