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________________ 520] घ्यिाख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कुडग्गामे नगरे इंदमहे इ वा, खंदमहे इ वा, मुगुदमहे इ वा, नागमहे इ वा, जक्खमहे इ वा, भूयमहे इ बा, कूवमहे इ वा, तडागमहे इ वा, नइमहे इ वा, दहमहे इ वा, पच्चयमहे इ वा, रुक्खमहे इ वा, चेइयमहे इ था, थूभनंहे इ वा, जं गं एए बहवे उग्गा भोगा राइना इक्खागा गाया कोरवा खत्तिया खत्तियपुत्ता भडा भडपुत्ता सेणावई 2 पसत्थारो 2 लेच्छई 2 माहणा 2 इन्भा 2 जहा उववाइए जाव' सत्थवाहप्पभिइओ व्हाया कयबलिकम्मा जहा उववाइए जाव निग्गच्छति ? एवं संपेहेइ, एवं संपेहिता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेति, कंचुइज्जपुरिसं सहावेत्ता एवं क्यासि-कि णं देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुडग्गामे नगरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति ? 24] तब बहुत-से मनुष्यों के शब्द और उनका परस्पर मिलन (सन्निपात) सुन और देख कर उस क्षत्रियकुमार जमालि के मन में विचार यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ— 'क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में इन्द्र का उत्सव है ?, अथवा स्कन्दोत्सव है ?, या मुकुन्द (वासुदेव) महोत्सव है ? नाग का उत्सव है, यक्ष का उत्सब है, अथवा भूतमहोत्सव है ? या किसी कूप का, सरोवर का, नदी का या द्रह का उत्सव है ?, अथवा किसी पर्वत का, वृक्ष का, चैत्य का अथवा स्तूप का उत्सव है ?, जिसके कारण ये बहत-से उग्र (उनकूल के क्षत्रिय), भोग (भोगकूल या भोजकूल के क्षत्रिय), राजन्य. इक्ष्वाकु (कुलीन). ज्ञात (कुलीन), कौरव्य क्षत्रिय, क्षत्रियपत्र, भट (योद्धा), भटपूत्र, सेनापति, सेनापतिपुत्र, प्रशास्ता एवं प्रशास्तृपुत्र, लिच्छवी (लिच्छवीगण के क्षत्रिय), लिच्छवीपुत्र, ब्राह्मण (माहण), ब्राह्मणपुत्र एवं इभ्य (श्रेष्ठी) इत्यादि औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् सार्थवाह-प्रमुख, स्नान आदि करके यावत् बाहर निकल रहे हैं ? इस प्रकार विचार करके उसने कंचुकीपुरुष (सेवक) को बुलाया और उससे पूछा--"हे देवानुप्रियो ! क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बाहर इन्द्र ग्रादि का कोई उत्सव है, जिसके कारण यावत् ये सब लोग बाहर जा रहे हैं ?' 25. तए णं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वृत्त समाणे हद्वतुटु० समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल० जमालि खत्तियकुमारं जएणं विजएणं बहावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी—'णो खलु देवाणुप्पिया! अज्ज खत्तियकुडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा जाव' निग्गच्छति / एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सव्वष्णू सव्वदरिसी माहणकुडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तए णं एए बहवे उग्गा भोगा जाव अप्पेगइया बंदणवत्तियं जाव' निम्गच्छति / 1. 'जाव' शब्द से सूचित पाठ-"माहणा भडा जोहा मल्लई लेच्छई अग्ने य बहवे राईसर-तलवर-माउंबिय-कोई बिध-इभ-सेट्रि-सेणाबद।" 2 'जाव' शब्द से सुचित पाठ-"कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सिरसाकंठेमालाकडा।" 3. 'जाब' शब्द से सूचित पाठ—'अप्येगइया पूअणवत्तियं एवं सरकारवत्तिय सम्माणवत्तियं कोउहल्लयत्तिय असुयाई सुणिस्सामो, सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो, मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पवइस्सामो, अप्पेगइया हयगया एवं गय-रह-सिमिया-संकमाणियागया, अप्पेगइया पार्यावहारचारिणो पुरिसवगुरापरिक्खिता •महता विकसीहणायबोलकलकलरवेण समुद्दरवभूयं पिब करेमाणा खत्तिय डग्गामस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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