________________ नवम शतक : उद्देशक-३३] [519 रहा था। माणेमाणे = मनाया जाता हुआ / कालं गालेमाणे = समय बिताता हुआ / बत्तीसतिबद्धहि नाडएहि = बत्तीस प्रकार के अभिनयों अथवा नाटक के पात्रों से सम्बद्ध नाटक / ' भगवान का पदार्पण सुन कर दर्शन-वन्दनादि के लिए गमन-- 23. तए णं खत्तियकुडग्गामे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर जाव' बहुजणसद्दे इ वा जहा उववाइए आव एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समगे भगवं महावीरे आइगरे जाव सव्वष्णू सव्वदरिसी माहणकुडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ। तं महप्फलं खलु देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं जहा उववाइए जाव' एगाभिमुहे खत्तियकुडग्गामं नगरं मझमझेणं निग्गच्छंति, निम्गच्छित्ता जेणेव माहणकुडग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए चेइए एवं जहा उववाइए जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति / 23. उस दिन क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में शृगाटक, त्रिक, चतुष्क और चत्वर यावत् महापथ पर बहुत-से लोगों का कोलाहल हो रहा था, इत्यादि सारा वर्णन जिस प्रकार औपपातिकसूत्र में है, उसी प्रकार यहाँ जानना चाहिए; यावत् बहुत-से लोग परस्पर एक-दूसरे से इस प्रकार कह रहे थे, यावत् बता रहे थे कि 'देवानुप्रियो! आदिकर (धर्म-तीर्थ की आदि करने वाले) यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर, इस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान (चैत्य) में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं / अतः हे देवानुप्रियो ! तथारूप अरिहन्त भगवान् के नाम, गोत्र के श्रवण-मात्र से महान् फल होता है; इत्यादि वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार जान लेना चाहिए, यावत् वह जनसमूह तीन प्रकार की पर्युपासना करता है / 24. तए णं तस्स जमालिस्त खत्तियकुमारस्स तं महया जणसई वा जाव जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुप्पज्जित्था--कि णं अज्ज खत्तिय 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 462 2. 'जाव' पद सूचित पाठ..'चउम्मुहमहापह-पहेसु'-अ व. 3. पीपपातिक सूत्र गत पाठ संक्षेप में.----."जणबहे इया जणबोले इबा जणकलकले ति वा जणुम्मी इ वा जणुवक लिया इवा जणसन्निवाए इ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खाइ एवं भासई।" 4. 'जाव' शब्द निदिष्ट पाठ-"उग्गहं ओगिण्हति, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अपाणं भावेमाणे।" 5. 'जाव' शब्द सूचक पाठ--"नामगोयस्स वि सबरण्याए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-गमंसण-पडिपुच्छण-पज्जु वासणयाए ?, एगस्स वि आयरियस्स सुवधणस्त सवणयाए, किमंग पूण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ?, तं गच्छामो ण देवाणप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो, एयं णे पेच्चमवे हियाए सुहाए खमाए णिस्सेअसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कटटु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता एवं खत्तिया भडा अप्पेगइया बंदणवत्तियं एवं पूअणवत्तियं सकारवत्तियं सम्माणबत्तियं कोउहलबत्तियं, अप्पेगइया 'जीयमेय' ति कटु।" 6. 'जाव' शब्द सूचित पाठ---"तेणामेय उवागच्छति, तेणामेव उवागांच्छता छत्ताइए तित्थयराइसए पासंति, जाण वाहणाई ठाइति / " 7. 'जाब' शब्द से सूचित पाठ-"चितिए पथिए मणोगए संकप्पे।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org