________________ नवम शतक : उद्देशक-३३] [221 125] तब जमालि क्षत्रियकुमार के इस प्रकार कहने पर वह कंचुकी पुरुष अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुअा। उसने श्रमण भगवान् महावीर का (नगर में) प्रागमन जान कर एवं निश्चित करके हाथ जोड़ कर जय-विजय-ध्वनि से जमालि क्षत्रियकुमार को बधाई दी। तत्पश्चात् उसने इस प्रकार कहा---'हे देवानुप्रिय ! प्राज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बाहर इन्द्र आदि का उत्सव नहीं है, जिसके कारण यावत् लोग नगर से बाहर जा रहे हैं, किन्तु हे देवानुप्रिय ! आदिकर यावत् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी थमण भगवान् महावीर स्वामी ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान में अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं; इसी कारण ये उग्रकुल, भोगकुल आदि के क्षत्रिय आदि तथा और भी अनेक जन वन्दन के लिए यावत् जा रहे हैं।' 26. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ट० कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, कोडुबियपुरिसे सद्दावइत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउघंट आसरहं जुत्तामेव उवटवेह, उवद्ववेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह / [26] तदनन्तर कंचुकी पुरुष से यह बात सुन कर और हृदय में धारण करके जमालि क्षत्रियकुमार हर्षित एवं सन्तुष्ट हुा / उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुला कर इस प्रकार कहा-- . 'देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही चार घण्टा वाले अश्वरथ को जोत कर यहाँ उपस्थित करो और मेरी इस प्राज्ञा का पालन करके निवेदन करो!' 27. तए गं ते कोडुबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पच्चपिणंति / [27] तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने क्षत्रियकुमार जमालि के इस आदेश को सुन कर तदनुसार कार्य करके यावत् निवेदन किया। 28. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता हाए कयबलिकम्मे जहा' उववाइए परिसा-बण्णओ तहा भाणियव्वं जाव चंदणोक्खित्तगायसरोरे सव्वालंकारविभूसिए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, मज्जणघराओ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता चाउघंटे आसरहं दुरूहेइ, चाउघंटं आसरहं दुरूहित्ता सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडफरपहकरवंदपरिक्खित्ते खत्तियकुडग्गामं नगरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुडग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हेइ, तुरए निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, रहं ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहति, रहाओ पच्चोरुहित्ता पुप्फ-तंबोलाउहमादीयं वाहणाओ य विसज्जेइ, वाहणाओ विसज्जित्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, एगसाडियं उत्तरासंगं करेत्ता आयते चोखे परमसुइन्भूए अंजलिमलियहत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेत्ता जाव तिविहाए पन्जुवासणाए पज्जुवासेइ / 1. औपपातिक सूत्र में परिषद् वर्णन-~"अणेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर माउंबिय-कोड विय-मंति-महामंति गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेटि-[सेणावइ-] सत्थवाह-दूय-संधिवाल सद्धि संपरिवुडे / " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org