________________ 514] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [13] तदनन्तर उस देवानन्दा ब्राह्मणी के पाना चढ़ा (अर्थात्-उसके स्तनों में दूध आ गया)। उसके नेत्र हर्षाश्र ओं से भीग गए / हर्ष से प्रफुल्लित होती हुई उसकी बाहों को वलयों ने रोक लिया। (अर्थात्---उसकी भुजाओं के कड़े-बाजूबंद तंग हो गए)। हर्षातिरेक से उसकी कञ्चुकी (कांचली) विस्तीर्ण हो गई / मेघ की धारा से विकसित कदम्बपुष्प के समान उसका शरीर रोमाञ्चित हो गया। फिर वह श्रमण भगवान् महावीर को अनिमेष दृष्टि से (टकट की लगाकर) देखती रही। 14. 'भंते !' ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-किं णं भंते ! एसा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया तं चेव जाव रोमकवा देवाणुप्पियं अणिमिसाए दिट्टीए देहमाणी देहमाणी चिट्टइ ? 'गोयमा !' दि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं बयासी-एवं खलु गोयमा! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा, अहं णं देवाणंदाए माहणीए अत्तए / तेणं एसा देवाणंदा माहणी तेणं पुन्वपुत्तसिणेहाणुरागेणं आगयपण्हया जाव समूससियरोमकूवा मम अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी देहमाणी' चिट्ठइ / [14] (यह देखकर) भगवान् गौतम ने, 'भगवन् !' यों कह कर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन नमस्कार किया। उसके पश्चात् इस प्रकार [प्रश्न पूछा-भन्ते ! इस देवानन्दा ब्राह्मणी के स्तनों से दूध कैसे निकल पाया? यावत् इसे रोमांच क्यों हो पाया ? और यह आप देवानुप्रिय को अनिमेष दृष्टि से देखती हुई क्यों खड़ी है ? उ.] 'गौतम !' यों कह कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा-हे गौतम ! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है। मैं देवानन्दा का प्रात्मज (पुत्र) हैं / इसलिए देवानन्दा को पूर्व-पुत्रस्नेहानुरागवश दूध आ गया, यावत् रोमाञ्च हुआ और यह मुझे अनिमेष दृष्टि से देख रही है। विवेचन-देवानन्दा माता और पुत्रस्नेह-भगवान महावीर को देखते ही देवानन्दा के स्तनों से दुग्धधारा फूट निकली, रोमांच हो गया / हर्ष से नेत्र प्रफुल्लित हो गए और वह भगवान् महावीर की ओर अपलक दष्टि से देखने लगी / इस विषय की गौतमस्वामी की शंका का समाधान करते हुए भगवान् ने रहस्योद्घाटन किया-देवानन्दा मेरी माता है। प्रथम गर्भाधानकाल में मैं उसके गर्भ में रहा, इसलिए पुत्रस्नेह रूप अनुरागवश यह सब होना स्वाभाविक है / 2 ___ कठिन शब्दों का अर्थ-प्रागयपण्हया-अागतप्रश्रवा स्तनों में दूध आ गया / पप्फुयलोयणाप्रस्फुटितलोचना हर्ष से नयन विकसित हो गए / संवरियवलयबाहा= हर्ष से फूलती हुई बांहों को बाजूबंदों ने रोका। कंचुयपरिक्खिता- कंचुकी विस्तृत हो गई। धाराहयकलंबगंपिव = मेघधारा से विकसित कदम्बपुष्प के समान / समूससियरोमकूवारोमकूप विकसित हो गए / अम्मगा-अम्मा = माता / अतए == आत्मज--पुत्र / देहमाणी = देखती हुई। ----- . . . ..-. 1. 'देहमाणी' के बदले 'पेहमाणी' पाठ अन्तकृत् प्रादि शास्त्रों में अधिक प्रचलित है। अर्थ दोनों का समान है / 2. भगवती. भा. 4 (पं घेव०), पृ. 1700 3. भगवती. अ. वृत्ति., पत्र 460 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org