________________ नवम शतक : उद्देशक-३३] निकला और बहुशालक नामक उद्यान में पाया / वहाँ तीर्थंकर भगवान के छत्र प्रादि अतिशयों को देखा / देखते ही उसने श्रेष्ठ धार्मिक रथ को ठहराया और उस श्रेष्ठ धर्म-रथ से नीचे उतरा। रथ से उतर कर वह श्रमण भगवान महावीर के पास पांच प्रकार के अभिगमपूर्वक गया। वे पांच अभिगम इस प्रकार हैं--(१) सचित्त द्रव्यों का त्याग करना इत्यादि; द्वितीय शतक (के पंचम उद्देशक सू. 14) में कहे अनुसार यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना से उपासना करने लगा। 12. तए णं सा देवाणंदा माहणी धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता० बहुयाहि खुज्जाहिं जाव' महत्तरगवंदपरिक्खित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा-सचित्ताणं दवाणं विओसरणयाए 1 प्रचित्ताणं दम्वाणं अविमोयणयाए 2 विणयोणयाए गायलट्ठीए 3 चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं 4 मणस्स एगत्तीभावकरणेणं 5 / जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महाबीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उसमदत्तं माहणं पुरओ कटु ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी णमंसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासइ / [12] तदनन्तर बह देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी और अपनी बहुत-सी दासियों आदि यावत् महत्तरिका-वृन्द से परिवृत हो कर श्रमण भगवान् महावीर के सम्मुख पंचविध अभिगमपूर्वक जाने लगी / वे पाँच अभिगम इस प्रकार हैं--(१) सचित्त द्रव्यों का त्याग करना, (2) अचित्त द्रव्यों का त्याग न करना, अर्थात् वस्त्र आदि को व्यवस्थित ढंग से धारण करना, (3) विनय से शरीर को अवनत करना (नीचे झुकाना), (4) भगवान् के दृष्टिगोचर होते ही दोनों हाथ जोड़ना, (5) मन को एकाग्न करना / इन पांच अभिग्रहों द्वारा जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ वह आई और उसने भगवान् को तीन बार आदक्षिण (दाहिनी ओर से) प्रदक्षिणा की, फिर वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार के बाद ऋषभदत्त ब्राह्मण को आगे करके अपने परिवार सहित शुश्रूषा करती हुई, नमन करती हुई, सम्मुख खड़ी रह कर विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर उपासना करने लगी। विवेचन -पांच अभिगम क्या और क्यों?-त्यागी महापुरुषों के पास जाने की एक विशिष्ट मर्यादा को शास्त्रीय परिभाषा में अभिगम कहते हैं / वे पाँच प्रकार के हैं परन्तु स्त्री और पुरुष के लिए तीसरे अभिगम में अन्तर है। श्रावक के लिए है—-एक पट वाले दुपट्टे का उत्तरासंग करना, जबकि श्राविका के लिए है--विनय से शरीर को झुकाना / साधु-साध्वियों के पास जाने के लिए इन पांच अभिगमों का पालन करना आवश्यक है। देवानन्दा की मातृवत्सलता और गौतम का समाधान 13. तए णं सा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया पप्फुयलोयणा संवरियवलयबाहा कंचुयपरिवित्तिया धाराहयकलंबग पिव समूससियरोमकूवा समणं भगवं महावीरं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी देहमाणी चिट्ठति / / 1. "जाव' पद से यह पाठ--चेडियाचक्कवालवरिसधर-थेरकंचुइज्ज-महत्तरयवंदपरिक्खिता। 2. भगवती भा 4 पं. घेवरचन्दजी), पृ. 1700 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org