________________ 512] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 10 तब देवानन्दा ब्राह्मणी ने भी (अन्तःपुर में) स्नान किया, यावत् अल्पभार वाले महामूल्य आभूषणों से शरीर को सुशोभित किया। फिर बहुत सी कुब्जा दासियों तथा चिलात देश की दासियों के साथ यावत् अन्त:पुर से निकली। अन्तःपुर से निकल कर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ खड़ा था, वहाँ आई / उस श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ़ हुई। विवेचन-भगवान के दर्शन-वन्दनादि के लिए जाने को तैयारी प्रस्तुत सू. 7 से 10 तक चार सूत्रों में क्रमशः कौटुम्बिक पुरुषों को श्रेष्ठ धार्मिक रथ को तैयार करके शीघ्र उपस्थित करने की आज्ञा दी, उन्होंने प्राज्ञा शिरोधार्य की और शीघ्र धार्मिक रथ तैयार करके प्रस्तुत किया। तदनन्तर ऋषभदत्त ब्राह्मण तथा देवानन्दा ब्राहाणी पृथक्-पृथक् स्नानादि से निवृत्त होकर वेशभूपा से सुसज्जित हुए और धार्मिक रथ में बैठे / ' कठिन शब्दों के अर्थ-कोडुबियपुरिसा = कौटुम्बिक पुरुष (सेवक' या कर्मचारी)। सद्दावेइ = बुलाए / खिप्पामेव = शीघ्र ही / लहुकरणजुत्ता - शीन गति करने वाले उपकरणों-साधनों से युक्त / समखुर-वालिधाण = समानखुर और पूछ वाले / समलिहिसिगे समान चित्रित सांगोंवाले / जंबूणयमयकलावजुत्त = जाम्बूनद-स्वर्ण से बने हुए कलापों व कण्ठ के आभूषणों से युक्त / परिविसिट्ठ हि = प्रतिविशिष्ट प्रधानरूप से फुर्तीले / रययामयघंट = चांदी की घंटियों से युक्त / सुत्तरज्जुयवरकंचणनत्थपरगहोग्गहियएहि - सोने के डोरी (सूत्र) की नाथ (नासारज्जु) से बंधे हुए / णीलुप्पलकयामेलएहि = नील कमल की कलंगी से युक्त / पवरगोणजुवाणएहि = जवान श्रेष्ठ बैलों से / सुजायजुगजोत्तरज्जुयजुगपसत्य-सुविरचितनिम्मियं = उत्तम काष्ठ के जुए और जोत की रस्सियों से सुनियोजित / पवरलक्खणोववेयं = उत्कृष्ट लक्षणों से युक्त / जुत्तामेव जोत कर / उवट्टवेह = उपस्थित करो / एयमाणत्तियं = इस आशा को / पच्चप्पिणह =प्रत्यर्पण करो-वापिस लौटायो। तहत्ति-तथास्तु-ऐसा ही होगा। खुज्जाहि-कुब्जा दासियों के साथ। चिलाइयाहि = चिलात (किरात) देश में उत्पन्न दासियों के साथ / ' 11. तए णं से उसभदते माहणे देवाणंदाए माहणीए सद्धि धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे समाणे णियगपरियालसंपरिवुडे माहणकुडग्गामं नगरं मज्झमज्भेणं निम्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवाईच्छत्ता छत्तादीए तित्थकरातिसए पासइ, 2 धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, 2 समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति, तं जहा-सचित्ताणं दवाणं विओसरणयाए एवं जहा बिइयसए (स० 2 उ० 5 सु० 14) जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ / [11] इसके पश्चात् वह ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानन्दा ब्राह्मणी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर चढा हुअा अपने परिवार से परिवृत्त होकर ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में होता हुआ 1. वियाहपण्णत्तिमुत्तं (मूलपाठ टिप्पण) भा. 1, पृ. 452 2. (क) भगवती. अ. त्ति, पत्र 459 (ख) भगवती. तृतीय खण्ड (गुजरात विद्यापीठ), प. 163 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org