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________________ [511 नवम शतक : उद्देशक-३३] बैलों से युक्त, अनेक प्रकार की मणिमय घंटियों के समूह से व्याप्त, उत्तम काष्ठमय जुए (धूसर) और जोत की उत्तम दो डोरियों से युक्त, प्रवर (श्रेष्ठ) लक्षणों से युक्त धार्मिक श्रेष्ठ यान (रथ) शोघ्र तैयार करके यहाँ उपस्थित करो और इस प्राज्ञा को वापिस करो अर्थात् इस प्राज्ञा का पालन करके मुझे सूचना करो। 8. तए णं ते कोडुबियपुरिसा उसमदत्तेणं माहणेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ जाव हिण्या करयल एवं वयासो-सामो ! 'तह त्ताणाए विणएणं क्यणं जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त० जाव धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवद्ववेत्ता जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणति / [8] जब ऋषभदत ब्राह्मण ने उन कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा, तब वे उसे सुन कर अत्यन्त हषित यावत हृदय में आनन्दित हुए और मस्तक पर अंर्जाल करके इस प्रकार कहा - स्वामिन् ! आपकी यह आज्ञा हमें मान्य है-तथाऽस्तु (ऐसा ही होगा) / इस प्रकार कह कर विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया और (ऋषभदत्त की आज्ञानुसार) शीघ्र ही द्र तगामी दो बैलों से युक्त यावत् श्रेष्ठ धामिक रथ को तैयार करके उपस्थित किया; यावत् उनकी आज्ञा के पालन की सूचना दी। 9. तए णं से उसभदत्ते माहणे हाए जाव अपमहग्याभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, साओ गिहाओ पडिनिक्खभित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे / [6] तदनन्तर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण स्नान यावत् अल्पभार (कम वजन के) और महामूल्य वाले प्राभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत किये हुए अपने घर से बाहर निकला। घर से बाहर निकल कर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धामिक रथ था, वहाँ आया / पाकर उस रथ पर आरूढ़ हुआ। 10. तए णं सा देवाणंदा माहणी' हाया जाव अप्पमहाघाभरणालंकियसरीरा बहूहि खुज्जाहि चिलाइयाहि जाव' अंतेउराओ निग्गच्छति; अंतेउराओ निग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुढ़ा। वाचनान्तर में देवानन्दा-वर्णक-...'अंतो अंतेउरंसि व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छिता वरपादपत्तने. उरमणिमेहलाहाररइयचियकडगखुड्डागएगावलीकंठसुत्तउरत्थगेयेज्जसोणिसुत्तगणाणामणिरयणभूसणविराइयंगी चोणंसुयवस्थपवरपरिहिया दुगुल्लसुकुमालउत्तरिज्जा सम्वोउयसुरभिकुसुमरियसिरया वरचंदणवंदिया वराभरण भूसियंगी कालागुरुधवविया सिरीसमाणवेसा।' अ. वृति पत्रांक 459. 2. 'जाव' पद से निम्नलिखित पाठ समझना चाहिए-बामणियाहिं वडहियाहि बब्बरियाहि पओसियाहि ईसिगणि याहि वासगणियाहि जोहि ('जोणि'प्रत्य०) याहि पल्हवियाहि ल्हासियाहि लसियाहिं आरबीहि दमिलाहि सिंहलीहि पुलिंदीहि पक्कणीहि बहलोहि मुरुडीहिं सबरोहि पारसीहि नाणादेसिविदेसपरिपिडियाहिं सदेसनेवत्यहियवेसाहि इंगियचिंतियपत्थियवियाणियाहिं कुसलाहिं विणीयाहिं, युक्ता इति गम्यते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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