________________ 510] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र हित के लिए, सुख के लिए, क्षमता (--संगतता) के लिए, निःश्रेयस के लिए और प्रानुगामिकता (:-शुभ अनुबन्ध) के लिए होगा / 6. तए णं सा देवाणंदा माहणी उसमदतेणं माहणेणं एवं वृत्ता समाणी हट जाव हियया करयल जाव कटु उसमदत्तस्स माहणस्स एयमझें विणएणं पडिसुणेइ / / तत्पश्चात् ऋषभदत्त ब्राह्मण से इस प्रकार का कथन सुन कर देवानन्दा ब्राह्मणी हृदय में अत्यन्त हर्षित यावत् उल्लसित हुई और उसने दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि करके ऋषभदत्त ब्राह्मण के कथन को विनयपूर्वक स्वीकार किया। विवेचन-भगवान महावीर की सेवा में दर्शन-वन्दनादि के लिए जाने का निश्चय–प्रस्तुत सू. 4 से 6 तक में भगवान महावीर का ब्राह्मण कुण्ड में पदार्पण, ऋषभदत्त द्वारा हर्षित होकर देवानन्दा को शुभ समाचार सुनाया जाना तथा भगवान् के नाम-गोत्र श्रवण, अभिगमन, वन्दन-नमन, पृच्छा, पर्युपासना, वचनश्रवण, ग्रहण आदि का माहात्म्य एवं फल बताकर दर्शन-वन्दनादि के लिए जाने का विचार प्रस्तुत करना, तथा इस कार्य को हितकर, सुखकर, श्रेयस्कर एवं परम्परानुगामी बताना; यह सब सुनकर देवानन्दा द्वारा हर्षित होकर सविनय समर्थन एवं दर्शन-वन्दनादि के लिए जाने का दोनों का निश्चय क्रमशः प्रतिपादित किया गया है।' __कठिन शब्दों के अर्थ इमीसे कहाए लद्ध? समाणे = यह (–श्रमण भगवान महावीर के कुण्डग्राम में पदार्पण को) बात जान कर / हदुतुटुचित्तमार्णदिया = अत्यन्त हृष्ट-प्रसन्न, सन्तुष्टचित्त एवं आनन्दित / आगासगएणं चक्केणं आकाशगत चक्र(धर्मचक्र) से युक्त / अहापडिरूवं अपने कल्प के अनुरूप / खमाए =क्षमतासंगतता के लिए / आणुमहमियत्ताए = प्रानुगामिकता अर्थात् - परम्परा से चलने वाले शुभ अनुबन्ध के लिए। ब्राह्मणदम्पती की दर्शनवन्दनार्थ जाने की तैयारी 7. तए णं से उसभदत्ते भाहणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ कोड बियपुरिसे सद्दावेत्ता एवं वयासो-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया! लहुकरणजुत्त-जोइय-समखुर-वालिधाण-समलिहियसिंगएहिं जंबूणयामयकलावजुत्तपइविसिट्टएहि रययामयघंटसुत्तरज्जयवरकंचणनस्थपग्गहोगविरहि नोलप्पलकयामेलएहि पवरगोणजुवाणएहि नाणामणिरयणघंटियाजालपरिगयं सुजायजुगजोत्तरज्जुयजुगपसत्यसुविरचितनिम्मियं पवरलक्खगोववेयं धम्मियं जाणप्यवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उपद्ववित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चघिणह। 7) तत्पश्चात् उस ऋषभदत्त ब्राह्मण ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों (सेवकों) को बुलाया और इस प्रकार कहा-देवानुप्रियो ! शीघ्र चलने वाले, प्रशस्त, सदृशरूप वाले, समान खुर और पूछ वाले, एक समान सींग वाले, स्वर्णनिर्मित कलापों (ग्राभूषणों) से युक्त, उत्तम गति (चाल) वाले, चांदी की * घंटियों से युक्त, स्वर्णमय नाथ (नासारज्जु) द्वारा बांधे हुए, नील कमल की कलंगी वाले दो उत्तम युवा 1. वियाहपज्जतिसुत्तं (मूलपाठ टिप्पण) भा. 1, पृ. 450 2. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 459 (ख) भगवती. खण्ड 3 (गु. विद्यापीठ), पृ. 162 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org