________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [ 499 तीन से लेकर असंख्यात तक के प्रवेशनक-भंग---देवों के प्रवेशनक-भंग 3 से असंख्यात तक तियंचों के प्रवेशनक-भंग के समान समझने चाहिए।' उत्कृष्टरूप से देव-प्रवेशनक-प्ररूपणा 45. उक्कोसा भंते ! 0 पुच्छा। गंगेया ! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होज्जा। अहवा जोइसिय-भवणवासीसु य होज्जा। अहवा जोइसिय-वाणमंतरेसु य होज्जा। अहवा जोइसिय-वेमाणिएसु य होज्जा / अहवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य वाणमंतरेसु य होज्जा। अहवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य वेमाणिएसु य होज्जा / अहवा जोइसिएसु य वाणमंतरेसु य बेमाणिएसु य होज्जा / अहवा जोइसिएसु य भवणवासीसु य वाणमंतरेसु य वेमाणिएसु य होज्जा / [45 प्र.] भगवन् ! उत्कृष्टरूप से देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए किन देवों में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [45 उ.] गांगेय ! वे सभी ज्योतिष्क देवों में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और भवनवासी देवों में होते हैं, अथवा ज्योतिष्क और बाणब्यन्तर देवों में होते हैं. अथवा ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में होते हैं / अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वाणव्यन्तर देवों में होते हैं, अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वैमानिक देवों में होते हैं, अथवा ज्योतिष्क, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासो, वाणव्यन्तर और वैमानिक देवों में होते हैं। विवेचन-उत्कृष्ट देव-प्रवेशनक-प्ररूपणा--ज्योतिष्क देवों में जाने वाले जीव बहुत होते हैं। इसलिए उत्कृष्टपद में कहा गया है कि ये सभी ज्योतिष्क देवों में होते हैं / द्विकसंयोगी 3 भंग-ज्यो. वाण., ज्यो. वै., या ज्यो. भ. देवों में / त्रिकसंयोगी 3 भंग--ज्यो. भ. वा., ज्यो. भ. ब., एवं ज्यो. वा. वै. / चतुष्कसंयोगी एक भंग ज्योतिष्क, भ., वा. वैमा. / भवनवासी आदि देवों के प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व 46. एयस्स णं भंते ! भवणवासिदेवपवेसणगस्स वाणमंतरदेवपवेसणगस्स जोइसियदेवपवेसणगस्स वेमाणियदेवपवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिए वा ? गंगेया ! सम्बत्थोवे वेमाणियदेवपवेसणए, भवणवासिदेवपवेसणए असंखेज्जगुणे, काणमंतरदेवपवेसणए असंखेज्जगुणे, जोइसियदेवपवेसणए संखेज्जगुणे। 1. वियाहपण्णत्तिसुत (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 445 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 445 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org