________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [ 497 मनुष्यों में होते हैं और एक गर्भज मनुष्यों में होता है / अथवा असंख्यात सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और दो गर्भज मनुष्यों से होते हैं / अथवा इस प्रकार यावत् असंख्यात सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं / विवेचन--मनुष्य-प्रवेशनक के प्रकार और भंग-मनुष्य-प्रवेशनक के दो प्रकार हैं--सम्भूच्छिममनुष्य-प्रवेशनक और गर्भज-मनुष्य-प्रवेशनक / इन दोनों की अपेक्षा एक से लेकर संख्यात तक भंग पूर्ववत् समझना चाहिए / संख्यातपद में द्विकसंयोगी भंग पूर्ववत् 11 ही होते हैं / असंख्यातपद में पहले बारह विकल्प बताए गए हैं, लेकिन यहाँ 11 ही विकल्प (भंग) होते हैं; क्योंकि यदि सम्मूच्छिम मनुष्यों में असंख्यातपन की तरह गर्भज मनुष्यों में भी असंख्यातपन होता, तभी बारह भंग बन सकते थे, किन्तु गर्भज मनुष्य असंख्यात नहीं होते / अतएव उनके प्रवेशनक में असंख्यातपन नहीं हो सकता / अतः असंख्यातपद के संयोग से भी 11 ही विकल्प होते हैं।' उत्कृष्टरूप से मनुष्य-प्रवेशनक-प्ररूपणा-- 40. उक्कोसा भंते ! मणुस्सा० पुच्छा। गंगेया ! सव्वे वि ताव सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा / अहवा सम्मुच्छिममणुस्सेसु य गम्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा / |40 प्र. भगवन् ! मनुष्य उत्कृष्ट रूप से किस प्रवेशनक में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / {40 उ. | गांगेय ! बे सभी सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं / अथवा सम्मूच्छिम मनुष्यों में और गर्भज मनुष्यों में होते हैं। विवेचन-उत्कृष्टपद में प्रवेशनक-विचार-उत्कृष्टपद में सम्मूच्छिम-मनुष्य-प्रवेशनक कहा गया है, क्योंकि सम्मूच्छिम मनुष्य ही असंख्यात हैं / इसलिए उनके प्रवेशनक भी असंख्यात हो सकते हैं। मनुष्य-प्रवेशनकों का अल्प-बहुत्व 41. एयस्स गं भंते ! सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणगस्स गम्भवक्कंतियमणुस्तपवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिए का? गंगेया ! सम्वत्थोवे गम्भवतियमणुस्सपवेसणए, सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणए असंखेज्जगुणे / 41 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम-मनुष्य-प्रवेशनक और गर्भज-मनुष्य-प्रवेशनक, इन (दोनों में) से कौन किस से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? 41 उ.] गांगेय ! सब से थोड़े गर्भज-मनुष्य-प्रवेशनक हैं, उनसे सम्मूच्छिम-मनुष्य प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 453 2. भगवती, अ. वत्ति पत्र 453 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org