________________ 496] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [36 प्र.] भगवन् ! मनुष्यप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हमा एक मनुष्य क्या सम्मूच्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है, अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? [36 उ.] हे गांगेय ! वह या तो सम्मूच्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होता है / 37. दो भंते ! मणुस्सा० पुच्छा। गंगया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गम्भवक्केतियमणुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, एगे गम्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा। एवं एएणं कमेणं जहा नेरइयपवेसणए तहा मणुस्सपवेसणए वि भाणियब्वे जाव दस / [37 प्र.] भगवन् ! दो मनुष्य, मनुष्य-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूच्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि (पूर्ववत् ) प्रश्न / [37 उ.] गांगेय ! दो मनुष्य या तो सम्मूच्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अथवा गर्भज मनुष्यों में होते हैं। अथवा एक सम्मूच्छिम मनुष्यों में और एक गर्भज मनुष्यों में होता है / इस क्रम से जिस प्रकार नैरयिक-प्रवेशनक कहा, उसी प्रकार मनुष्य-प्रवेशनक भी कहना चाहिए / यावत् दस मनुष्यों तक कहना चाहिए। 38. संखेज्जा भंते ! मणुस्सा० पुच्छा। गंगेया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा गम्भवक्कैतियमणुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा / अहवा दो सम्मुच्छिममगुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गम्भवक्कैतियमणुस्सेसु होज्जा / एवं एक्केक्कं ओसारितेसु जाव अहवा संखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गम्भवक्कंतियमगुस्सेसु होज्जा। [38 प्र.] भगवन् ! संख्यात मनुष्य, मनुष्यप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [38 उ.! गांगेय ! वे सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं, अथवा गर्भज मनुष्यों में होते हैं / अथवा एक समूच्छिम मनुष्यों में होता है और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं / अथवा दो सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक बढ़ाते हुए यावत् संख्यात सम्मूच्छिम मनुष्यों में और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं / 39. असंखेज्जा भंते ! मणुस्सा० पुच्छा / गंगेया ! सम्बे वि ताव सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा। अहवा असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु, एगे गम्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा। अहवा असंखेज्जा सम्मुच्छिमणुस्सेसु, दो गम्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा / एवं जाव असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा। [36 प्र.] भगवन् ! असंख्यात मनुष्य, मनुष्यप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए, इत्यादि प्रश्न / [36 उ. गांगेय ! वे सभी सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं / अथवा असंख्यात सम्मूच्छिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org