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________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [495 विवेचन–एकेन्द्रियों में उत्कृष्टपद-प्रवेशनक-एकेन्द्रिय जीव प्रतिसमय अत्यधिक संख्या में उत्पन्न होते हैं, इसलिए एकेन्द्रियों में ये सभी होते हैं।' द्विकसंयोगी से पंचसंयोगी तक भंग----प्रसंगवश यहाँ उत्कृष्टपद से द्विकसंयोगी चार प्रकार के, त्रिकसंयोगी छह प्रकार के, चतुःसंयोगी चार प्रकार के और पंचसंयोगी एक ही प्रकार के होते हैं / ' एकेन्द्रियादि तिर्यञ्चप्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ___34. एयस्स णं भंते ! एगिदियतिरिक्खजोणियपवेसणगस्स जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणयस्स य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिए वा ? गंग या ! सव्वस्थोवे पंत्रिदियतिरिक्खजोणियपवेसणए, चरिदियतिरिषखजोणियप० विसेसाहिए, तेइंदिय०, विसेसाहिए, बेइंदिय० विसेसाहिए, एगिदियतिरिक्ख० विसेसाहिए। [34 प्र. भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक से लेकर यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक तक में से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? (34 उ.] गांगेय ! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक हैं, उनसे चतुरिन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक विशेषाधिक हैं और उनसे एकेन्द्रिय-तियंञ्चयोनिक-प्रवेशनक विशेषाधिक हैं। विवेचन-तिर्यञ्च-प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व-विपरीत क्रम से अर्थात् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों के प्रवेशनक से एकेन्द्रिय तिर्यञ्च-प्रवेशनक तक उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं। मनुष्य-प्रवेशनक :प्रकार और भंग-- 35. मणुस्सपवेसणए गं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ? गंग या ! दुबिहे पणत्ते, तं जहा सम्मुच्छिममगुस्सपवेसणए, गम्भवक्कंतियमणुस्सपवेसणए य। [35 प्र.] भगवन् ! मनुष्यप्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? [35 उ.] गांगेय ! मनुष्यप्रवेशनक दो प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार--- (1) सम्मूच्छिम मनुष्यप्रवेशनक और (2) गर्भजमनुष्य-प्रवेशनक / 36. एगे भंते ! मणुस्से मणुस्सपवेसणए गं पविसमाणे किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, गन्भवतियमणुस्सेसु होज्जा? गंगया! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गम्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा। 1. भगवती. अ. वृत्ति. पत्र 451. 2. वही, अ. वृत्ति, पत्र 451 3. वियाहपत्तिसुतं. (मूलपाठ-टिप्पण) भा. 1 पृ. 443. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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